Book Title: Jain Gita
Author(s): Vidyasagar Acharya
Publisher: Ratanchand Bhayji Damoha

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Page 154
________________ ३६. नय सूत्र द्रव्यांश को विषय है अपना बनाता, होता विकल्प श्रुत धारक का सुहाता । माना गया नय वही श्रुत भेद प्यारा, ज्ञानी वही कि जिसने नय ज्ञान घारा ॥६९०॥ एकान्त को यदि पराजित है कराना, भाई तुम्हें प्रथम है नय ज्ञान पाना । स्याद्वाद बोध नय के बिन ना निहाला, चाबी बिना नहिं खुले गृह-द्वार ताला ॥६९१॥ ज्यों चाहता वृष बिना 'जड़' मोक्ष जाना, किंवा तृषी जल बिना हि तृषा बुझाना । त्यों वस्तु को समझना नय के बिना ही, है चाहता अबुध ही भवराह राही ॥६९२।। तीर्थेश का वचन सार द्विधा कहाता, सामान्य आदिम द्वितीय विशेष भाता । दो द्रब्य पर्ययतया नय हैं उन्हीं के, ये ही यथाक्रम विवेचक भद्र दीखे ॥ भेदोपभेद इनके नय शेष जो भी, तू जान ईदृश सदा तज लोभ लोभी ! ॥६९३॥ सामान्य को विषय है नय जो बनाता, तो शून्य ही वह 'विशेष' उसे दिखाता । जो जानता नय सदैव विशेष को है, सामान्य शून्य दिखता सहसा उसे है ।।६९४।। [ १३४ ]

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