Book Title: Jain Gita
Author(s): Vidyasagar Acharya
Publisher: Ratanchand Bhayji Damoha
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है द्रव्य सांप्रत दशामय यों बताता, निक्षेप "भाव" वह पागम में कहाता। नोप्रागमागमतया वह भी द्विधा है, वाणी जिनेन्द्र कथिता कहती सुधा है । प्रात्मोपयोग जिन पागम में लगाता, महंन् उसी समय है जिन शास्त्र-ज्ञाता। तो "भाव पागम" नितान्त यही रहा है, ऐसा यहाँ श्रमण सूत्र बता रहा है । प्रहन्त के गुण सभी प्रकटे जभी से, प्रहन्त देव उनको कहना तभी से । है केवली जब उन्ही गुण धार ध्याता, "नोप्रागमा" वह जिनागम में कहाता |७४३-७४४।।
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