Book Title: Jain Gita Author(s): Vidyasagar Acharya Publisher: Ratanchand Bhayji Damoha View full book textPage 158
________________ जो-जो क्रिया जन तनादितया करें प्रो! तत्-तत् क्रिया गमक शब्द निरे निरे हो ! एवंभुता नय प्रतः उस शब्द का है, सम्यक् प्रयोग करता जब काम का है । जैसा सुसाधु रत साधन में सही हो, स्तोता तभी कर रहा स्तुति स्तुत्य की हो ॥७१३॥ [ १३८ ]Page Navigation
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