Book Title: Jain Gita
Author(s): Vidyasagar Acharya
Publisher: Ratanchand Bhayji Damoha

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Page 151
________________ ३८. प्रमाण सूत्र संमोह-संभ्रम-ससंशय हीन प्यारा, कल्यान खान वह ज्ञान प्रमाण प्याला ! माना गया स्वपर भाव प्रभाव दर्शी, साकार नैकनिध शाश्वत सौख्य स्पर्शी ॥६७४।। सज्ज्ञान पंचविध ही मति ज्ञान प्यारा, दूजा श्रुतावधि तृतीय सुधा मुघारा । चौथा पुनीत मनपर्यय ज्ञान मानूं, है पांचबा परम केवल ज्ञान-भानु ॥६७५।। सज्ज्ञान पंच विध ही गुरु गा रहे हैं, लेके सहार जिसका शिव जा रहे हैं । सम्पूर्ण क्षायिक सुकेवल ज्ञान नामी, चारों क्षयोपशमिका अवशेष स्वामी ॥६७६॥ ईहा, अपोह, मति, शक्ति, तथैव सजा, मीमांस, मार्गण, गवेषण और प्रज्ञा । ये सर्व ही अभिनि वोधिक जान पाई, पूजो इसे बम यही शिव-सौम्य दाई ।।६७७।। प्राधार ले विषय का मति के जनाताजो अन्य द्रव्य, श्रुत ज्ञान वही कहाता । प्रो लिंगगन्दज तया श्रुत ही द्विधा है, होता नितान्त मतिपूर्वक ही मुधा है। है मुख्य शब्दज जिनागम म कहाता, जो भी उम उर घरे भव पार जाता ॥६७८।। [ १३१ ]

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