Book Title: Jain Dharm me Dev aur Purusharth
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 19
________________ अध्याय दूसरा। [२९ बना सकते हैं । एक दशा बिगड़ेगी तब दूसरी बनेगी । कपासपना कभी नाश नहीं होगा । इसलिये कपास गुण पर्यायवान है व उत्पाद व्यय नोव्यरूप है। हजारों लाखों दृष्टान्तोंसे यही सिद्ध होगा कि मूल वस्तु सदा बनी रहती है। केवल उसकी पर्याय या अवस्थाएं ही बनती तथा विगडती है। आत्माकी तरफ विचार करें तो हम देखेंगे कि कोई आत्मा सिी समय क्रोधी होरहा है, वहीं कुछ देर पीछे गात होजाता है। यहां क्रोधका नाग व गातिका जन्म हुआ तथापि आत्मा वही है । जब एक मानव मरकर पशु पढा होता है तब मानवपनका नाग, पशुपनका जन्म हुआ परन्तु आत्मा वही है। इस जगतमे जितने मूल पदार्थ जीव तथा अजीब है वे मव बने रहते है, केवल उनमें अवस्था बढरा करती है। Root substances always exist, only the conditions are chunging इस जगतको जो परिवर्तनगील व क्षणिक व नाशवंत कहा जाता है वह सब अवस्थाओंके बहरनेकी अपेक्षासे ही कहा जाता है। वहीं नगर उजाड होगया, वहीं नगर बम गया । पानीसे भाफ बनती है, मेघ बनते है । मेघसे फिर पानी बनता है। नदी सूख जाती है फिर भर जाती है। कहीं मकान टूट जाता है कहीं बन जाता है। सर्व ही द्रव्य अपनी २ अवस्थामें हमको दिखलाई पड़ते हैं। वै अवस्थाएं वढलती हैं, इसीसे जगतके पदार्थ मिथ्या व नागवंत कहाते है, परन्तु हम किसी भी • वस्तुका सर्वथा लोप नहीं कर सक्ते हैं। कपडेको जलाएंगे, राख बन .जायगी ।.न कोई चीन विना किसी चीजके बिगडे बन सक्ती है न

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