Book Title: Jain Dharm me Dev aur Purusharth
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 56
________________ ११६ ] ---` 14. L-100 उच्छ्वास इन ५ को जोड़नेसे २८ का उदय ६ ठे गुणस्थानम आहारक शरीरधारी मुनियों के होता है । जैनधर्ममें देव और पुरुषार्थ | a २ नं० ३ प्रकार ऊपर ४ मेसे औदारिक शरीरको निकालकर वैक्रियक शरीर, वैक्रियक अंगोपाग, पग्वात, एक कोई विद्यायोगति, व उच्छ्वास इन ५ को जोडनेसे २८ का उदय देव या नारकियों क होता है । नं० (८) २९ का उदयस्थानइसके प्रकार ६ है--- नं० १ प्रकार - सामान्य मनुष्यके २८ मे या समुद्घात सामान्य केवलीके २८ मं उच्छ्वास प्रकृति जोडनसे २० का उदय उन्हीं होता है । नं० २ प्रकार — ऊपर २४ में औढारिक अंगोपान, १ कोई संहनन परघात व एक विहायोगति, तथा उद्योत इम तरह ५ प्रकृति जोडनेसे २९ का उदय दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेंद्रिय होता है । नं० ३ प्रकार — इन्हीं २९ मेसे उद्योत निकाल कर तीन उच्छ्वास जोडनेसे २९ का उदय ढो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेद्रिय होता है । नं० ४ प्रकार — ऊपर २४ मे औदारिक अंगोपांग. प्रथम संहनन, परघात, प्रशस्त विहायोगति, तीर्थकर इन ५ को जोडने से २९ का उदय समुद्घात तीर्थकर केवलीके होता है ।

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