Book Title: Jain Dharm me Dev aur Purusharth
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 54
________________ MALINIRMAnkrani... uncannuar-ne ११२] ' जैनधर्ममें दैव और पुरुषार्थ । नं० २ उपर्युक्त ६ में जुगुप्सा विना नं० ३- ६ में भय विना नं० ४-, ६ में भय जुगुप्सा विना ४ ९ अनिवृत्तिकरण-इसके प्रथम भागमें हास्यादि ६ नोकपायका उदय न होगा, उदयस्थान १-२ प्रकृतिका होगा। नं. १-संज्वलन क्रोध, मान, माया या लोभ १ ३ वेदमेंसे दूसरे भागमे वेदका उदय नहीं तब एकका उदयस्थान होगा। सज्वलन क्रोध, मान, माया या लोभ ३ रे भागमें क्रोधका उदय न होगा १ का उदयस्थान होगा। संज्वलन मान, माया या लोभ ४ थे भागमें मानका उदय न होगा, १ का उदयस्थान होगा। संज्वलन माया या लोभ ५ वें भागमें मायाका उदय न होगा, मात्र १ उदयस्थान लोभका होगा १० सूक्ष्मलोभ गुण-यहां १ सूक्ष्म लोभका उदय होनेसे १ उदयस्थान होमा । ___ इसतरह मोहनीय कर्मके उदयस्थान १०-९-८-७-६५-४-२-१ ऐसे ९ होंगे। विशेष-किसी सादि मिथ्यादृष्टि जीवके अनंतानुबन्धी कपायका उदय नहीं होता । अत. १ प्रकृति घटाकर मिथ्यात्व गुणस्थानमें ४ उदयस्थान ९-०-८-७ के होंगे।

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