Book Title: Jain Dharm me Dev aur Purusharth
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 52
________________ -AIRememorrarmiremer-msmom rrrrrammam १०८] जैनधर्ममें देव और पुरुषार्थ । होसकता है, या भयका अकेले या जुगुप्साका अकेले उढय होसत्ता है अथवा जुगुप्सा भय दोनोंका किसी जीवके उदय नहीं होसकता। नं० १-मिथ्यात्र गुणस्थानमें ४ उदयस्थान होंगे। १०९-९-८ । नं. १ (१० का) मिथ्यात्व प्रकृति १ अनंतानुबंधी आदि क्रोध या मान या माया या लोभ ४ ३ वेदमेंसे १ वेद हास्य रति युगल या शोक अरति युगलमेंसे भय जुगुप्सा नं० २-(९ का ) उपर्युक्त १० मेंसे जुगुप्सा विना . नं. ३-उपर्युक्त १० मेसे भय विना नं ४-उपर्युक्त १० मेंसे भय जुगुप्सा दोनों विना ८ २ सासादन गुणस्थान-~यहां मिथ्यात्वका उदय न होगा, उदयस्थान ४ होंगे। ९-८-८-७ नं० १-४ अनंतानुबंधी आदि क्रोध या मान या माया या लोम ३ वेदमेंसे १ वेद हास्य रति या शोक अरतिमेसे भय जुगुप्सा नं० २-उपर्युक्त ९ में जुगुप्सा विना

Loading...

Page Navigation
1 ... 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66