Book Title: Jain Dharm me Dev aur Purusharth
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 51
________________ अध्याय तीसरा । [ १०५ 11111 ་པ ་ གཡས་ 11 नीचे अब यह बताते हैं कि किस गुणस्थान मे कितनी प्रकृतियोका उदय होता है तथा १२८ मेंसे किसका उदय नही होता है। अर्थात् अनुदय होता है - और कितनेकी व्युच्छित्ति होती है । अनुदय उदय उदय प्रकृति प्रकृति व्युच्छित्ति सख्या मुख्या सख्या मिथ्यात्व ५ ११७ ५ गुणस्थान मामादन ११ १११ मिश्र २२ १०० अविरति १८ १०४ देशविरति ३५ प्रमत्त ४१ अप्रमत्त अपूर्वकरण अतिवृत्ति सूक्ष्म सा० ४६ ܘ ५६ ६२ उपगात मोह श्रीणमोह सयांग केवली अयोग केवलि ११० ६३ ६५ ८० ८७ ८१ ७६ ७२ ६६ ६० ५९ ५७ ४२* १२ ? २७ www ४ ६ १ २ १६ ३० w १२ विवरण अनुदय तीर्थंकर, आहारक शरीर, आहारक अगोपांग, मिश्र, सम्यक्त ११ = १०+ नरकगत्यानुपूर्वी ०२ = २० + तियेच मनुष्य देवगत्यानु० २३ - १ मिश्र = २२ १८=२३-४ गत्यानुपूर्वी १ सम्यक्त= १८ ४१=४३ - आहारक शरीर, आहारक अगोपांग ८०-८१ - १ कोई वेदनीय ३०=२९+१ कोई वेदनीय नोट -- दो वेदनीयमेंमे १ मयांगी गुण० में व्युच्छिन्न होजायगी बाकी १ रहनेसे १२ व्युच्छिन्न होंगी। पहले नकोमं १३ नाना जीवोंकी अपेक्षा है।

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