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अध्याय तीसरा ।
८- कर्माकी सत्ता अथवा उनका सत्व । सब जगह गुणस्थानों में किस गुणस्थान में कितनी प्रकृतियों का असत्व, सत्व, सत्य व्युच्छित्ति होती है उसका विवरण निम्नप्रकार है:
अमन्त्र मन्त्र
१ मिथ्यान्य
२ सासादन
३ मित्र
४ असंयत ५ देशयत
६ प्रमत्त
७ अप्रमत्त
८ अपूर्वक
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३
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सत्य
व्यु०
श्गा क्षपका
८ अनिवृत्ति- १० करण क्ष
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१४८ १
१४७] १
१४६ ०
२ १४६ ८
१४५०
१४७०
१३८ ०
१३८ ३६
९ सूक्ष्म श्र० ४६ १०२ १. १२ क्षीणमोह ४७ ? ??
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३= आहारक डिक, तीर्थंकर । इनकी सत्तावाला मानादनमें नहीं जाता ।
१=अरात्व=नरकायु | यहां १ व्यु० = तियेचायु ।
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१= तीर्थंकर । तीर्थकर प्रकृतिके सत्य
बाला इस गुणस्थान में नहीं जाता । १ = नरकाय ।
२= नरकायु. तियचाय | इनकी सत्तावा प्रमत्तमं नहीं जायेगा । ८=४ अनंतानुबंधी, ३ दर्शनमोहनीय, १ देवायु। यह कथन क्षपक श्रेणीकी अपेक्षा क्षायिक सम्यक्त्व ४ से ७ वें तक हो सकता है, ७ प्रकृतिकी मत्ता ४ से ७ वें तक नहीं रहेगी । १०=४ अनंतानुबंधी, ३ दर्शनमोहनीय, ३ नरक तिर्यच देवायु | ३६ = नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी, तियन्न्रगति तियचगत्यानुपूर्वी ३ विकलत्र्य, ३ स्त्यानगृद्धि आदि निद्रा, उद्योत, आतप, एकेन्द्री, साधारण, सूक्ष्म, स्थावर, ४ अप्रत्याख्यान, ४ प्रत्याख्यानके साथ ६ हास्यादि, ३ वेद, संज्वलन क्रोध, माया, मान । १ = मंज्वलन लोभ |
१६ = ५ ज्ञानावरण, ४ दर्शनावरण, ५ अन्तराय, निद्रा प्रचला ।