Book Title: Jain Dharm me Dev aur Purusharth
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 29
________________ .९२] . - जैनधर्म दैव और पुरुषार्थ । ... पटणा नहीं कर सकते हैं। जगतके प्राणियोंका विभाग प्राणोंकी अपेक्षा नीचे प्रकार है. प्राण दश होते है-पाच इन्द्रिय प्राण, काय बल, वचन बल, मन वल, प्राण, आयु, उच्छ्वास । जिनसे कोई जीव स्थूल शरीर में जाकर कुछ काम कर सके उन शक्तियों ( Vitalhtaes ) को प्राणा कहते हैं। एकेन्द्रिय प्राणी जैसे पृथ्वीकायधारी, जलकायघारी. अग्निकावधारी, वायुकायधारी, वनस्पतिकायघारी, Vogtables इन पांच प्रकारके स्थावर कायवालों के एक स्पर्शनइन्द्रिय होती है, जिससे छू करके ही जानते है । इनके चार प्राण पाए जाते है-१ स्पर्शनइन्द्रिय, २ कायबल, ३ आयु, ४ उच्छ्वास। द्वीन्द्रिय प्राणी-जैसे लट, केचुआ, कौड़ी, संख, सीप । इनके स्पर्शन व रसना दो इन्द्रियां होती हैं, ये छूकर व खाकर जानते हैं। इनके प्राण छः होते है । एकेन्द्रियके चार प्राणों में रेसना इन्द्रिय व वचनबल बढ़ जाते है। : तेन्द्रिय प्राणी-जैसे चीटी, खटमल, जूं, इनके स्पर्शन, रसना, नाक तीन इन्द्रिय होती है। ये छूकर, खाकर व सूंघकर जान सक्ते हैं इनके प्राण सात होते हैं एक नाक इन्द्रिय बढ़ जाती है। .. चौन्द्रिय प्राणी-जैसे मक्खी, भौंरा, पतंग, मिड़ इनके स्पर्शन, रंसना, नाक, आंख चार इन्द्रियें होती हैं। ये छूकर, खाकर, सूंघकर व देखकर जान सक्ते है। इनके प्राण आठ होते है। एक आंख बढ जाती है। पेन्द्रिय प्राणी असैनी–जैसे पानीमें रहनेवाले कोई २ .

Loading...

Page Navigation
1 ... 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66