Book Title: Jain Dharm me Dev aur Purusharth
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 36
________________ NAYANE.ME.... अध्याय तीसग। ....... कर आम लेना चाहता है। नील लेझ्यावाला जड़ छोड़कर धड़से काटकर आम लेना चाहता है। कापोत लेश्यावाला बड़ी २ शाखाएं तोड़कर आम लेना चाहता है। पीत लेश्यावाला आमके गुच्छे तोड़ना चाहता है। पद्म लेश्यावाला पक्क आम ही तोड़ना चाहता है। शुक्ल लेश्यावाला नीचे गिरे हुए आमोंको ही खाना चाहता है। हरएक बुद्धिमान प्राणी अपने भीतरके भावोंसे अपनी लेझ्याका या अशुभ तथा शुभ भावोंका पता लगा सक्ता है। आठ कर्माक उत्तर भावोंक होनमें बाहरी निमित्त प्रबल कारण पड़ते हैं, भेद। इसलिये उत्तम संगतिका विचार सदा करते रहना . चाहिये। आठ कमकि उत्तर भेद १४८ हैं। उनका जानना भी जरूरी है। ज्ञानावरण कर्मके ५, दर्शनावरण कर्मके ९, : वेदनीयके २, मोहनीयके २८, आयु कर्मक ४, नाम कर्मके ९३, गोत्र कर्मके २, अंतरायके ५ कुल १४८ हैं। ५-ज्ञानावरणकी उत्तरप्रकृति।। (१) मतिज्ञानावरण-जिसके उदयसे मतिज्ञान (पांच इंद्रिय तथा मनसे होनेवाला सीधा ज्ञान) न होसके। ५ (२) श्रुतज्ञानावरण—जिसके उदयसे श्रुतज्ञान (मतिज्ञानसे जाने हुए पदार्थसे अन्य पदार्थका ज्ञान) न होसके। (३) अवविज्ञानावरण-जिसके उदयसे अवधिज्ञान (एक दिव्यज्ञान) न होसके। (४) मनापर्यय ज्ञानावरण-जिसके उदयसे मनःपर्यय ज्ञान. (एक दिव्यज्ञान ) न होसके।

Loading...

Page Navigation
1 ... 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66