Book Title: Jain Dharm me Dev aur Purusharth
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 38
________________ - va अध्याय तीसरा । ७३ योगियोंक बनता है । तैजस कार्मण दो सूक्ष्म शरीर सब संसारी प्राणियों के होते हैं। ३-अहापांग-ओवारिक, बैंक्रियिक, आहारक शरीरोंमें जिसके उदयसे अङ्ग व उपाङ्ग बनें। १-निर्माग-जिसके उदयस अङ्ग उपाङ्गोंक स्थान व प्रमाण बने। ५-बंधन-जिसके उदयस पांचों शरीराक युदल परस्पर बंधे। ५-बात-जिसके उदयसे पांचों शरीकि पुद्गल छिद्ररहित 'मिल जावें। ६-सम्यान-जिसके उदयसे शरीरोंका आकार बने । वे थाकार छः प्रकार हैं समन्तुन्न संस्थान-शरीर सुडौल सांचं ढला जैसा हो। न्यग्रोधारिमंडल सं०-शरीर वटवृक्षक समान ऊपर बड़ा नीचे छोटा हो। स्वाति सं०-शरीर सपैक विलके समान ऊपर छोटा नीच बड़ा हो। कुन्जक सं०-शरीर कुबड़ा हो, पीठ उठी हो । वामन सं०-शरीर वोना व छोटा हो। हुंडक, सं०-शरीर वडील व खराव हो। ६-संहनन-जिनके उदयसे द्वन्द्रियादि त्रस तिर्यच व मान. बाँके शरीरके भीतर हड्डीकी विशेषता हो । वे छ प्रकार हैं वनपमनाराच संहनन-वन (हीरोंके समान न मिदनवाले नयोंके नाल कीलें व हाइ हों। ' हा

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