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८०] जैनधर्ममें दैव और पुरुषार्थ ।
पल्य असंख्यात वर्षोंका होता है उससे बहुत अधिक सागरके वर्ष हैं। ४८ मिनिटसे एक समय कम उत्कृष्ट व १ आवली, १ समयका जघन्य अन्नमुहूर्त होता है। आख पलक लगनके समयसे कम समयका आवली कहते है । सैनी पंचेंद्रिय बलवान जीव तीव्रतम कषायसे आयु सिवाय सात कर्माकी उत्कृष्ट स्थिति बाधता ई, जबकि वही जीव अति मन्दनम कपायसे उनकी जघन्य स्थिति साधता है।
एकेंद्रियादि जीवोंकी अपेक्षा स्थिति बन्धका नियम यह है कि जब सैनी पंचेंद्रिय जीव ७० कोडाकोडी स्थिति वाधेगा तब उसी दर्शन मोहनीय कर्मकी असैनी पंचेंद्रिय १००० सागर, चौन्द्रिय जीव १०० सागर, तेन्द्रिय जीव ५० सागर, द्वेन्द्रिय जीव २५ सागर, एकेंद्रिय जीव-१ एक सागर स्थिति बाधेगा, इसी तरह सर्व कर्मोकी स्थितिका नियम है। जैसे ज्ञानावरण कर्मकी उत्कृष्ट स्थिति सैनी जीव ३० कोडाकोडी सागर बाधेगा। तत्र असैनी पचेंद्रिय १०००. सागर, चौन्द्रिय जीव ३१ सागर, तेंद्रिय ५० सागर, द्वेन्द्रिय सागर, एकेंद्रिय ॐ सागर वाधेगा।
जिस कर्मकी जितनी स्थिति पडती है उस स्थितिके समयोंमें कर्मवर्गणाएं आबाधा काल (प्राचीनकाल) पीछे शेष समयोंमें हीन क्रमसे बंट जाती हैं वे यदि कुछ परिवर्तन हो तो उसी वटवारेके अनुसार समय समय गिरती जाती है। यदि बाहरी निमित्त अनुकूल होता हो तो फल प्रगट कर झडती हैं। अनुकूल निमित्त नहीं होता है तो विना फल प्रगट किये ही झड जाती है।
जैसे किसी कर्मका बंब होते हुए ६३०० वर्गणाएं बंध व