Book Title: Jain Dharm me Dev aur Purusharth
Author(s): Shitalprasad
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 31
________________ neveenraarim m er.marewewwreservmwwwin अध्याय तीसरा। [५७ सबसे सूक्ष्म व सबसे अधिक शक्तिधारी कर्मिण वर्गणाएं हैं। . तैजस वर्गणामें जितने- परमाणुओंका बंध है उससे अनंतगुणे परमाणुओंका बंध कार्मण वर्गणामें है । जैन सिद्धान्तमें संख्याका अल्पबहुत मात्र बतानेके लिये संख्यात, असंख्यात, अनंत ऐसे तीन मेद किये हैं। मनुष्यकी बुद्धिमें आने योग्य गणना संख्यात तक है, शेष दो अधिक अधिक हैं। तैजस वर्गणाको बिजली या electric का स्कंध समझना चाहिये। . विजलीकी शक्ति से कैसे २ अपूर्व काम हो रहे हैं यह वात आजकलके विज्ञानने प्रत्यक्ष बना दी है। हजारों कोस दूरका शब्द सुन घड़ता है, हवाई विमान चलते हैं, बेतारकी खबरें जाती हैं, तब कार्मण वर्गणामें आश्चर्यकारी शक्ति होनी ही चाहिये तब ही पाप पुण्य कर्ममय कार्मण शरीरसे ,संसारी प्राणियोंकी विचित्र अवस्थाएं होती हैं। कार्मण शरीरके बननेका उपादान या मूल कारण कार्मण वर्गणाएं हैं। निमित्त कारण आत्माकी योगशक्ति व मोह भाव या क्रोधादि कषाय भाव या राग द्वेष मोह हैं। मन वचन या कायके हलन चलनसे आत्माके प्रदेशों में या आकारमें कंपनी होती है, लहरें प्रगट होती हैं, इस आत्म परिस्पंदको द्रव्ययोग कहते है। उसी काल योगशक्ति वर्गणाओंको खींचती हैं। इस शक्तिको भावयोग कहते हैं। ये खिंचकर आए हुए कर्म पहलेसे स्थित कार्मण शरीरके साथ बंध जाते हैं। उनके बंधनेमें तीव्र, तीव्रतर, मंद, मंदतर कषाय भाव निमित्त कारण होते हैं। कषाय सहित योगसे जो कर्म आते हैं उसको सांपरायिक आस्रव कहते हैं, क्योंकि वे

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