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५६1 जैनधर्ममें देव और पुरुषार्थ ।
२-तैजस वर्गणाएं" इनसे तैजस शरीर (विजलीका शरीर) Eelectrical body बनता है। यह शरीर कार्मण शरीरके साथ-साथ रहता है।
३-मनोवेर्गणाएं-इनसे द्रव्य मन mind organ हृदयके स्थानमें आठ पत्तोंके कमलके आकारका बनता है। इससे तर्क शक्तिमें मदद मिलती है।
भाषा वर्गणाएं-इनसे गन्द या बोली या आवाज
मानती है।
५-आहारक वर्गणाएं-इनसे तीन गरीर बनते हैं। औदारिक-मनुष्य व तिर्यचोंका स्थूल शरीर, क्रियिक-देव तथा नारकियोंका स्थूल शरीर, आहारक-साधुका दिव्य शरीर जो विशेष तपसे बनता है।
दश प्राणधारी मानव जन्मसे लेकर मरण तक इन पांचों प्रकारको वर्गणाओंको हर समय ग्रहण करता रहता है। आत्मामे एक योगशक्ति है यही खींचनेवाली शक्ति है। इसके द्वारा अपने आपसे वर्गणाएं खिंचकर आती है। लोक सब जगह इन पाचों प्रकारकी वर्गणाओंसे पूर्ण भरा है। जैसे गर्म लोहा पानीको खींच लेता है या चुम्बक पाषाण-लोहेको खींच लेता है वैसे योगशक्ति इनको खींच लेती है।
- योगशक्तिकी तीव्रता या प्रबलतासे अधिक वर्गणाएं खिंचती हैं, उसकी मंदतासे या निर्वलतासे थोड़ी वर्गणाएं खिंचती है। योगाभ्यासी तपस्वीके बहुत वर्गणाएं खिंचकर आती हैं । एकेन्द्रिय स्थावरके बहुत कम आती हैं, क्योंकि उसकी योगशक्ति निर्वल है। इन पांचोंमें