Book Title: Jain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Author(s): Savyasachi
Publisher: Jain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi

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Page 14
________________ महत्व देना चाहते हों उनको समझना चाहिये कि कन्या शब्द का अर्थ कुमारी नहीं, किन्तु विवाह योग्य स्त्री है । इस तरह भी विधवा विवाह आगम की आज्ञा के प्रतिकूल नहीं है । इस लिये उसका मिथ्यात्व के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है जिससे वह सम्यग्दर्शन का नाशक माना जा सके । प्रश्न (२)- पुनर्विवाह करने वाले सम्यक्त्वी होने पर स्वर्ग जा सकते हैं या नहीं ? । उत्तर-जा सकते हैं । जव पुनर्विवाह ब्रह्मचर्य अणुव्रत का साधक है तब उससे स्वर्ग जाने में क्या बाधा है ? स्वर्ग ता मिथ्यादृष्टि भी जाते हैं, फिर विधवा विवाह करने वाला तो अपनी पत्नी के साथ रहकर मम्यग्दृष्टि और छटवी प्रतिमा तक देशवती श्रावक भी हो सकता है और पीछे मुनिव्रत ले ले तो मोक्ष को भी जा सकता है । विधवा विवाह मोक्षमार्ग में उतना ही बाधक है जितना कि कुमारी विवाह ! स्वर्ग में दोनों ही बाधक नहीं है। दोनों से सोलहवें स्वर्ग तक जा सकता है । राजा मधुने चन्द्राभा को रख लिया था,फिर भी वह मर कर सोलहवें स्वर्ग गई । पहिले प्रश्न के उत्तर से इस प्रश्न के उत्तर पर पूरा प्रकाश पड़ जाता है प्रश्न (३)-विधवा विवाह से निर्यश्च और नरक गति का बंध होता है या नहीं ? उत्तर-विधवाविवाह से तिर्यश्च और नरक गति का बंध कदापि नहीं हो सकता, क्योंकि तिर्यञ्च गति और नरक गति अशुभ नाम कर्म के भीतर शामिल है। अशुभ नाम कर्म के बंध के कारण योग वक्रता और विसंवादन है । "योगवकता

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