Book Title: Jain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Author(s): Savyasachi
Publisher: Jain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi

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Page 13
________________ तो दीक्षान्वय क्रिया में स्त्री पुरुष का पुनर्विवाह संस्कार कैसे होगा? पुनर्विवाह संस्कारः पर्वः सर्वोस्य संमतः । सिद्धार्चनां पुरस्कृत्य पल्याः संस्कारमिच्छतः। -श्रादिपुगण ३६ वाँ पर्व । ६० वाँ श्लोक । अर्थात्-जब कोई अर्जन पुरुष जैनधर्म की दीक्षा ले तो उसका और उसकी स्त्री का फिर विवाह करना चाहिए । जो लोग कन्या का अर्थ कुमारी ही करेंगे उनके मत से उम पुरुष की पत्नी का विवाह कैसे होगा ? क्या भगवजिनसेनाचार्य के द्वारा बताया गया पुनर्विवाह भी अधर्म है ? इससे साफ मालूम होता है कि शास्त्रों में कन्या शब्द कुमारी के लिए नहीं, किन्तु विवाह योग्य स्त्री के लिये आया है। शास्त्रों में विवाह का कथन श्रादर्श या बहुलता को लेकर किया गया है। सागारधर्मामृत में कन्या के लिए निदोष विशेषण दिया गया है। निर्दोष का अर्थ किया है-सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार दोषों से गहत । परन्तु ऐसी बहुत थोड़ी ही कन्याएं होंगी जिनमें सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार दोष न हो । तो क्या उनका विवाह धर्म विरुद्ध कहलायगा ? इस लिये जिस प्रकार कन्या के स्वरूप में उसके "अनेक विशेषण अनिवार्य नहीं है. उसी प्रकार विवाह के लक्षण में भी कन्या का उल्लेख अनिवार्य नहीं है । क्योंकि कन्या और विधवा में करणानुयांग की दृष्टि में कोई अन्तर नहीं है, जिसके अनुसार कन्या और विधवा के लिये जुदी जुदी दो प्राज्ञाए बनाई जायं । जो लोग कन्या शब्द को अनुचित

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