Book Title: Jain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Author(s): Trupti Jain
Publisher: Trupti Jain

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Page 7
________________ IV रहना आवश्यक है। यही कारण है कि जैनधर्म में आचार्य हरिभद्र ने कहा था कि - "कषायों से मुक्ति ही वास्तविक मुक्ति है।" यहाँ ज्ञातव्य है कि पश्चिम में तनाव प्रबंधन को लेकर मनोवैज्ञानिकों ने काफी कुछ प्रयत्न किया है, फिर भी उनकी सोच का मुख्य आधार भौतिकवादी जीवन-दृष्टि ही रही है। इसके विपरीत भारतीय आध्यात्मिक चिन्तकों ने तनाव के कारण और तनाव से मुक्ति के उपायों पर आध्यात्मिक जीवन-दृष्टि के आधार पर चिन्तन किया है। यह सत्य है कि भौतिक जीवनदृष्टि के आधार पर तनाव के कारणों और उनसे मुक्ति के उपायों पर पर्याप्त रूप में शोध-कार्य या गवेषणा हुई है और हो रही है, किन्तु आध्यात्मिक दृष्टि के आधार पर इस सम्बन्ध में कुछ प्रयत्नों को छोड़कर प्रायः विशेष कार्य नहीं हुआ है। यद्यपि बौद्ध मनोविज्ञान को लेकर इस सम्बन्ध में कुछ छुट-पुट प्रयत्न देखे जाते हैं, किन्तु जैन धर्मदर्शन के आधार पर मनोवैज्ञानिक दृष्टि से इस समस्या पर विचार प्रायः कम ही हुआ है। आचार्य महाप्रज्ञजी और मुनि चंद्रप्रभसागर के प्रवचन साहित्य में इस समस्या को छूने का प्रयत्न तो हुआ है, किन्तु शोध की अपेक्षा से इस दिशा में कोई कार्य हुआ हो, ऐसा मेरी जानकारी में नहीं है। यही कारण है कि मैंने 'जैन धर्म दर्शन में तनाव-प्रबंधन' नामक विषय को अपनी शोध परियोजना का विषय बनाया और जैन धर्म दर्शन के उन्हीं ग्रन्थों के आधार पर इस शोध प्रबन्ध का प्रणयन किया है। यद्यपि इस शोध-कार्य में पाश्चात्य मनोवैज्ञानिकों के मन्तव्यों को भी आधार बनाया है और जहाँ तुलनात्मक विवेचन की आवश्यकता प्रतीत हुई हैं, वहाँ तुलनात्मक और समीक्षात्मक दृष्टि से भी विचार किया गया है। यहाँ इस कार्य में मुझे जिनका सहयोग मिला है, उनके प्रति आभार व्यक्त करना भी मेरा कर्त्तव्य है - कृतज्ञता ज्ञापन - सर्वप्रथम मैं हृदय की असीम आस्था के साथ नतमस्तक हूँ धर्मतीर्थ की स्थापना करने वाले परमतारक सिद्ध बुद्ध निरंजन निराकार परमात्मा एवं उनके Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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