Book Title: Jain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Author(s): Trupti Jain
Publisher: Trupti Jain

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Page 6
________________ III जन्म मानव के मन में होता है, अतः उनके निराकरण के लिए कहीं-न-कहीं मानव-मन के परिशोधन का प्रयत्न करना होगा। मन के परिशोधन का यह कार्य आध्यात्मिक जीवन-दृष्टि के विकास से सम्भवं है और इस हेतु हमें धर्म-दर्शन की शरण में जाना होगा। मानव-मन के परिशोधन के लिए प्राचीनकाल से ही आध्यात्मिक जीवन-दृष्टि का विकास आवश्यक माना गया है। यह एक महत्त्वपूर्ण तथ्य है कि भारतीय-चिन्तन में तनावों से मुक्त होने के लिए आध्यात्मिक जीवन-दृष्टि के विकास के प्रयत्न प्राचीनकाल से ही होते रहे हैं। इन्हीं प्रयत्नों के फलस्वरूप विभिन्न धर्मों व दर्शनों का प्रादुर्भाव हुआ है। इन धर्मों एवं दर्शनों में भारतीय श्रमणधारा एवं योग-साधना की परम्परा का एक प्रमुख स्थान है। जैनधर्म उसी श्रमणधारा और योग-साधना की परम्परा का प्रतिनिधित्व करता है। जैनधर्म में तनावों की उत्पत्ति के कारणों और उनके निराकरण के उपायों पर गहराई से विचार किया है। आचारांगसूत्र में भगवान् महावीर ने यह बताने का प्रयास किया है कि ममत्व की मिथ्यावृत्ति राग-द्वेष को जन्म देती है और अन्त में इनके कारण तनावों का जन्म होता है। अतः तनावों से मुक्त रहने के लिए क्षमा, निर-अभिमानता, सरलता और निर्लोभता के सद्गुणों का विकास करना होगा। जिस व्यक्ति में इन गुणों का विकास हो जाता है, वह व्यक्ति तनावमुक्त हो जाता है। जैन धर्म की दृष्टि में ममता तनावों की उर्वर जन्मभूमि है और समता या वीतरागता की साधना ही तनावों के निराकरण का मूलभूत उपाय है। यही कारण है कि भगवान् महावीर ने समता को धर्म कहा है। जैनधर्म में आचार्य कुन्दकुन्द ने तो यहाँ तक कहा है कि मोह और क्षोभ से रहित चेतना ही मुक्ति है। जैनधर्म की साधना वस्तुतः मोह और क्षोभ के निराकरण की साधना है। इसके लिए राग-द्वेष और कषायों से ऊपर उठना आवश्यक माना गया है। जहाँ राग-द्वेष का अभाव होगा, वहाँ कषायों का भी अभाव होगा और ऐसी स्थिति में तनावों का जन्म कभी नहीं होगा। वस्तुतः तनावमुक्ति ही मुक्ति है। तनावो का जन्म कषायों से होता है, अतः तनावों से मुक्त रहने के लिए कषायों से मुक्त Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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