________________
इतिहास 'जो देवोके द्वारा पूजा जाता था, जिसने अच्युत कल्प नाम स्वर्गमें दिव्य भोगोको भोगा, ऐसे महावीर जिनेन्द्रका जीव कुछ २५ वहत्तर वर्षकी आयु पाकर, पुष्पोत्तर नामक विमानसे च्युत होक ५ आसाढ शुक्ला षष्ठीके दिन, कुण्डपुर नगरके स्वामी सिद्धार्थ क्षत्रिय घर, नायवंशमे, सैकड़ो देवियोसे सेवित त्रिशला देवीके गर्भमें आयाऔर वहाँ नौ माह आठ दिन रहकर चैत्र शुक्ला त्रयोदशीकी रात्रि उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रके रहते हुए महावीरका जन्म हुआ।
'अट्ठाईस वर्ष सात माह और बारह दिन तक देवोकें द्वारा कि गये मानुषिक अनुपम सुखको भोगकर जो आभिनिबोधिक ज्ञान प्रतिबुद्ध हुए, ऐसे देवपूजितं महावीर भगवानने पप्ठोपवासके सा मार्गशीर्ष कृष्ण दशमीके दिन जिनदीक्षा ली।' -वारहवर्ष पांच माह और पन्द्रह दिन पर्यन्त छमस्थ अवस्था विताकर (तपस्या करके) रत्नत्रयसे शुद्ध महावीर भगवानने जम्भि ग्रामक बाहर ऋजुकूला नदीके किनारे सिलापट्टके ऊपर षष्ठोपवास साथ आतापन योग करते हुए, अपराह्नकालमे, जब छाया पादप्रमा थी, वैशाख शुक्ला दसमीके दिन क्षपक श्रेणिपर आरोहण किया की चार घातिया कर्मोका नाश करके केवल ज्ञान प्राप्त किया।'
तेरसिए रत्तीए जादुत्तरफागुणीए दु॥ मणुवत्तणसुहमतुल देवकय सेविरुण वासाई। अट्ठावीस सत्त य मासे दिवसे य बारसम॥ आभिणिवोहियदी छट्ठण य मगगसीसबहुलाए। दसमीए णिक्यतो सुरमहिदो णिक्खमणपुज्जो॥ गमय छदुमत्यत्त वारसवासाणि पचमासे य। पण्णारसाणि दिणाणि य तिरदणसुद्धो महावीरो॥ उजुकूलणदीतीरे जभियगामे बहिं सिलान । छठेणादावते अबरण्हे पादछायाए। वइसाहजोण्हपले दसमीए सवयसेढिमारुढो। हतूण धाइकम्म केवलणाण ममावण्णो।।"