Book Title: Jain Dharm
Author(s): Sampurnanand, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Jain Sahitya

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Page 239
________________ २३६ जैनधर्म हो गया है। पुष्पदन्त इस भापाके महान् कवि थे। इनका 'त्रिषष्टि महापुरुष गुणालकार' एक महान ग्रन्थ है । पुष्पदन्तने महाकवि स्वयभुका स्मरण किया है । स्वयम, पुष्पदन्त, कनकामर, रइच आदि अनेक कवियोने अपभ्रश भापाके साहित्यको समृद्ध बनानेमें कुछ उठा नही रखा। ___ कथा साहित्य भी विशाल है। आचार्य हरिपेणका कथाकोश बहुत प्राचीन (ई० स० ६३२) है। आराधना कथाकोश, पुण्याश्रव कथाकोश आदि अन्य भी बहुतते कयाकोग है जिनमे कयामओके द्वारा धर्माचरणका शुभ फल और अधर्माचरणका अशुभ फल दिखलाया गया है। चम्प काव्य भी जैन-साहित्यमे बहुत है । सोमदेवका यशस्तिलक चम्पू, हरिचन्द्रका जीवन्वर चम्पू और अहंहासका पुरुदेवचम्पू उत्कृष्ट चम्पू काव्य है । गद्यग्रन्थोमे वादीसिंहकी गद्यचिन्तामणि उल्लेखनीय है । नाटकोमे हस्तिमल्लके विक्रान्तकौरव, मैथिलीकल्याण, अजना पवनजय आदि दर्शनीय है । स्तोत्र साहित्य भी कम नही है, महाकवि धनजयका विषापहार, कुमुदचन्द्रका कल्याणमन्दिर आदि स्तोत्र साहित्यकी दृष्टिसे भी उत्कृप्ट है। स्वामी समन्तभद्रक स्वयभू स्तोत्रमे तो जनदर्शनके उच्चकोटिके सिद्धान्तोको कूट-कूट कर भर दिया गया है। वह एक दार्शनिक स्तवन है । नीति ग्रन्थोकी भी कमी नहीं है। वादीसिंहका क्षत्रचूडामणि काव्य एक नीतिपूर्ण काव्य ग्रन्थ है। आचार्य अमितगतिका सभाषितरत्नसदोह, पद्मनन्दि आचायका पद्मनन्दि पञ्चविंशतिका और महाराज अमोघवर्षको प्रश्नोत्तररत्नमाला भी सुन्दर नीतिग्रन्थ है। । इसके सिवा ज्योतिष, आयुर्वेद, व्याकरण, कोष, छन्द, अलंकार, गणित और राजनीति आदि विषयोपर भी जैनाचार्योकी अनेक रचनाएँ आज उपलब्ध है। ज्योतिष और आयुर्वेद विषयक साहित्य अभी प्रकाशमें कम आया है। व्याकरणमे पूज्यपाद देवनन्दिका जनन्द्र व्याकरण और शाकटायनका शाकटायन व्याकरण उल्लेखनीय है।

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