Book Title: Jain Dharm
Author(s): Sampurnanand, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Jain Sahitya

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Page 311
________________ विविध यदि जल ही आगको भडकाने लगे तो फिर उसे कौन वुझा सकेगा।' उत्तरमें पद्मने बलिको राज्य दे देनेका सब समाचार सुनाया और कुछ कर सकनमें अपनी असमर्थता प्रकट की । तब विष्णुकुमार मुनि वामनरूप धारण करके बलिके यज्ञमें पहुंचे और बलिके प्रार्थना करनेपर तीन पर धरती उससे माँगी। जब बलिने दानका संकल्प कर दिया तो विष्णुकुमारने विक्रिया ऋद्धिके द्वारा अपने शरीरको बढाया। उन्होने । अपना पहला पैर सुमेरु पर्वतपर रखा, दूसरा पैर मानुषोत्तर पर्वतपर, रखा, और तीसरा पैर स्थान न होनेसे माकाशमे डोलने लगा। तब सर्वत्र हाहाकार मच गया, देवता दौड़ पड़े और उन्होंने विष्णुकुमार मुनिसे प्रार्थना की 'भगवन् ? अपनी इस विक्रियाको समेटिये ।' आपके तपके प्रभावसे तीनों लोक चंचल हो उठे है । तब उन्होंने अपनी विक्रियाको समेटा । मुनियोंका उपसर्ग दूर हुआ और वलिको देशसे निकाल दिया गया। वलिके अत्याचारसे सर्वत्र हाहाकार मच गया था और ने यह प्रतिज्ञा कर ली थी कि जब मुनियोका संकट दूर होगा तो उन्ह. आहार कराकर ही भोजन ग्रहण करेंगे। संकट दूर होनेपर सब लोग ने दूधकी सीमियोंका हल्का भोजन तैयार किया, क्योकि मुनि कर. दिनके उपवासे थे । मुनि केवल सात सौ थे अतः वे केवल सात सौ पर पर ही पहुंच सकते थे। इसलिये शेष घरों में उनकी प्रतिकृति बनाकर और उसे आहार देकर प्रतिज्ञा पूरी की गई । सवने परस्परमे रक्ष' करनेका वन्धन बांधा, जिसकी स्मृति त्यौहारके रूपमें अवतक चली आती है। दीवारोंपर जो चित्र रचनाकी जाती है उसे "सौन' कह १ श्री वासुदेव शरण अग्रवालने हमें बताया है कि 'सोन' शब्द शनिक अपभ्रश है जिसका अर्थ होता है गरुड पक्षी। श्रावण मासमें नाग पचमीके ८ जो चित्रकारी की जाती है वह नागोकी सूचक है और रक्षावन्वनके दिन ज चित्रकारी की जाती है वह गडकी सूचक है। नागो और गरुडोके वमनस्यप उल्लेख वैदिक साहित्यमे पाया जाता है। तथा वह प्रकाश और अन्वकार.

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