Book Title: Jain Dharm
Author(s): Sampurnanand, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Jain Sahitya

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Page 316
________________ जैनधर्म ३१८ शाला है । दिगम्बर जैनोका मन्दिर तो बौद्ध मन्दिरके ही पासम है किन्तु श्वेताम्बर मन्दिर कुछ दूरीपर रेलवे स्टेगनके पास बना है। ___चन्द्रपुरी-~~-सारनाथ से मोलपर चन्द्रवटी नामका गाँव है जो चन्द्रपुरीका भग्नावगेप कहा जा सकता है। यहाँपर आठवे तीर्थङ्कर चन्द्रप्रभु भगवानने गन्म लिया था। यहां गंगाके तटपर दोनों सम्प्रदायोक मन्दिर अलग अलग बने हुए है। प्रयाग--यहाँ निवेणी संगमके पास ही एक पुराना किला है। किलेके भीतर जमीनके अन्दर एक अक्षयवट (वडका पेड) है। कहते है कि श्रीपभदेवने यहाँ तप किया था। किले में प्राचीन जैन 'मूर्तियां भी है। फफोसा-इलाहाबाद कानपुरके वीचमें उत्तरीय रेलवेपर भरवारी नामका स्टेशन है, वहाँस २०-२५ मीलपर यह एक छोटा सा गांव है। उसके पासमें ही प्रभास नामसे एक पहाड़ है। चढनके लिये ११६ सीढियों बनी हुई है। कहा जाता है कि इस पहाडपर छ तीर्थङ्कर पद्मप्रभु भगवानने तप किया था और यहीपर उन्हें केवल ज्ञानकी प्राप्ति हुई थी। यहाँ एक मन्दिर है और मन्दिरके आगे चट्टानमें उकेरी हुई प्रतिमाएं है। ___ कौशाम्बी-फफौसासे ४ मीलपर गढवाय नामका गाँव है। 'उसके पास हीमें कुशवा नामका गांव है, जिसे प्राचीन कौशाम्बी नगरी माना जाता है। इस नगरीमे भगवान पद्मप्रभुका जन्म हुआ था। । अयोध्या-जैन शास्त्रोके अनुसार यह प्रसिद्ध नगरी अति-प्राचीन कालसे जैनोंका मुख्य स्थान रही है। जनोके ५ तीर्थड्रोका जन्म ' इसी नगरीमें हुआ था। आज यहाँ अनेक जैन मन्दिर और धर्म शालाएं वर्तमान है। १२ खखूद-गोरखपुरसे एन० ई० रेलवेका नोनखार स्टेशन ३६ मील है। वहाँसे ३ मील खखूद गाँव है। इसका प्राचीन नाम किष्किन्धा वतलाया जाता है। यह श्रीपुष्पदन्त तीर्थङ्करका जन्म

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