Book Title: Jain Dharm
Author(s): Sampurnanand, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Jain Sahitya

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Page 333
________________ विविध ३३६ जोड़ा मौजूद है और उसके प्राण कंठगत है। जब लकडीको चीरा गया तो बात सत्य निकली। इस घटना के बाद ही पार्श्वनाथने प्रव्रज्या धारण कर ली थी और पूर्ण ज्ञानको प्राप्त करके जैनधर्मके सिद्धान्तोका उपदेश जनताको दिया था। भगवान पार्श्वनाथसे लगभग अढाई सौ वर्षके पश्चात् महावीर हुए और उनके बहुत हले भगवान ऋषभदेव हुए। अत जिस समय वैदिक आर्य भारत र्षमे आये उस समय भी यहाँ ऋषभदेवका धर्म मौजूद था और उनके अनुयायियोंसे भी वैदिक आर्योका सघर्ष अवश्य हुआ होगा। द्राविडवश लत भारतीय है और द्रविड़ संस्कृति भारतीय संस्कृति है, क्योंकि विड़ भाषाएँ केवल भारतवर्षमे ही पाई जाती है। यह द्रविड संस्कृति नवश्य ही जैनधर्मसे प्रभावित रही है। यही कारण है जो जैनधर्ममे विड नामसे भी एक संघ पाया जाता है । द्राविड़ वशका एक पात्र घर दक्षिण भारत ही है अत. उनके सम्पर्कमे वैदिक आर्य बहुत बादमें आये होगे। यही वजह है जो ऋग्वेदके वादमे सकलित किये पये यजुर्वेदमे कुछ जैन तीर्थङ्करोंके नाम पाये जाते है। ____ जव वैदिक धर्म यज्ञप्रधान बन गया और पुरोहितोंका राज्य हो गया तो उसके बाद हम जनतामे जो उसके प्रति भरुचि पाते है, जिसका उल्लेख ऊपर किया है वह आकस्मिक नही है किन्तु शुष्क क्रियाकाण्डकी विरोधिनी उस श्रमण संस्कृतिक विरोधका परिणाम है जिसके जन्मदाता ऋषभदेव थे। उसीके फलस्वरूप उपनिषदोकी रचना की गई, जिनमें वेदका प्रामाण्य तो स्वीकार किया गया किन्तु उससे प्राप्त होनेवाले ज्ञानको नीचा ज्ञान बतलाया गया और आत्मज्ञानको ऊंचा ज्ञान बतलाया गया। इस प्रकार उपनिषदोंने ऊंचे आध्यात्मिक सिद्धान्तका प्रतिपादन तो किया किन्तु वैदिक क्रियाकाण्डका विरोध नहीं किया। सर राधाकृष्णन्के अनुसार'-'जब समया आध्यात्मिक सिद्धान्तके प्रति एक निष्ठा चाहता था तव हम १ इडियन् फिलासफी, भा० १ पृ० २६४-६५ ।

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