Book Title: Jain Dharm
Author(s): Sampurnanand, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Jain Sahitya

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Page 327
________________ विविध इतनी बड़ी मूर्ति इतनी अधिक स्निग्ध है कि भक्तिके साथ कुछ प्रेमकी भी यह अधिकारिणी बनती है। धूप, हवा और पानीक प्रभावसे पीछेकी ओर ऊपरकी पपडी खिर पडनेपर भी इस मूर्तिका लावण्य खण्डित नहीं हुआ है। इसकी स्थापना आजसे एक हजार वर्ष पहले गंगवशके सेनापति और मत्री चामुण्डरायने कराई थी। इस पर्वतपर 'छोटे बड़े सब १० मन्दिर है। चन्द्रगिरिपर चढने के लिये भी सीडियाँ बनी है। पर्वतके ऊपर मध्यमें एक कोट बना है उसके अन्दर बडे-बडे प्राचीन १४ मन्दिर है। मन्दिरोमे बड़ी-बडी विशाल प्राचीन प्रतिमाएं है। एक गुफा, श्रीभद्रबाहु स्वामीके चरण चिह्न बने हुए जो लगभग एक फुट लम्बे है। ऐतिहासिक दृष्टिसे यह पहाडी बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसपर वहुतसे प्राचीन शिलालेख अकित है, जो मुद्रित हो चुके है। । नीचे ग्राममे भी सात मन्दिर और १३ चैत्यालय है । एक मन्दिरमें चित्रकलासे शोभित कसौटी पाषाणके स्तम है। यहां भी श्रीमट्टारक चारुकीर्ति जी महाराजकी गद्दी है। उनके मन्दिरमें भी कुछ रनोंकी प्रतिमाएं है। बड़ा अच्छा शास्त्र भंडार है। एक दिगम्बर जैन पाठशाला है। ___ इस प्रान्तमे अन्य भी अनेक स्थान है जहाँ जैन मन्दिर और मूर्तियाँ दर्शनीय है। उड़ीसा प्रान्त खण्डगिरि-उडीसा प्रान्तकी राजधानी कटक है। कटकके आसपास हजारो जैन प्रतिमाएं है। किन्तु उडीसामे जैनियों की संख्या कम होनेसे उनकी रक्षाका कोई प्रबन्ध नहीं है । कटकसे ही सुप्रसिद्ध खण्डगिरि उदयगिरिको जाते है। भुवनेश्वरसे पांच मील पश्चिम पुरी जिलेमें खण्डगिरि उदयगिरि नामकी दो पहाडियाँ है । दोनोपर पत्थर काटकर अनेक गुफाएँ और मन्दिर बनाये गये है, जो ईसासे लगभग ५० वर्ष पहलेसे लेकर ५०० वर्ष बाद तकके बने हुए है। उदयगिरिकी

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