Book Title: Jain Dharm
Author(s): Sampurnanand, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Jain Sahitya

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Page 318
________________ ३२२ जनधर्म है। यह भगवान महावीरकी मति मानी जाती है। इस प्रान्तमें इस मूर्तिकी बडी मान्यता है । दूर दूरसे लोग इसकी पूजा करनेके लिये आते है। इसके माहात्म्यक सम्बन्धमें अनेक किंवदन्तियां प्रचलित है। महाराजा छत्रसालके समयमें उन्हीकी प्रेरणासे इसका जीर्णोद्धार हुआ था, जिसका शिलालेख अकित है। सागरसे ४८ मीलपर वीनाजी क्षेत्र है यहां तीन जैन मन्दिर हैं जिनमें एक प्रतिमा शान्तिनाथ भगवानकी १४ फुट ऊंची तथा एक प्रतिमा महावीर भगवानकी १२ फुट ऊंची विराजमान है। और भी अनेक मनोहर मूर्तियां है। सागरसे ३८ मील मालयौन गांव है। गाँवसे १ मीलपर एक जैन मन्दिर है। इसमें १० गजसे लेकर २४ गजतककी ऊंची खडे आसनकी अनेक प्रतिमाएं है । ललितपुरसे १० मीलपर सरोन गांव है। वहांसे भाषा मीलपर ५-६ प्राचीन जैन मन्दिर है। चारो ओर कोट है। यहाँ एक मति २० गज ऊची शान्तिनाथ भगवानकी है, तथा चार पांच फुट ऊंची सेकहोखण्डित मूर्तियां है। । देवगढ---सेन्ट्रल रेल्वेके ललितपुर स्टेशनसे १६ मील एक पहाड़ीपर यह क्षेत्र स्थित है। यह सचमुच देवगढ है। यहाँ अनेक प्राचीन जिनालय है और अगणित खण्डित मूर्तियां है। कलाकी दृष्टिसे भी यहांकी मूर्तियां दर्शनीय है। कुशल कारीगरोने पत्थरको मोम कर दिया है। करीव २०० शिलालेख यहाँ उत्कीर्ण है। ५ मनोहर मानस्तभ है। प्राकृतिक सौन्दर्य भी अनुपम है । यहाँसे ६ मीलपर चाँदपुर स्थान है। वहाँ भी अनेक जैनमूर्तियां है जिनमें १४ गज ऊंची एक मूर्ति शान्तिनाथ तीर्थधरकी है। पपौरा-विध्यप्रान्तमें टीकगमढसे कुछ दूरीपर जंगलमें यह क्षेत्र स्थित है। इसके चारो ओर कोट वना है। जिसके अन्दर लगभग १० मन्दिर है । एक वीर विद्यालय भी है। कार्तिक सुदी १४ को प्रतिवर्ष मेला भरता है।

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