Book Title: Jain Dharm
Author(s): Sampurnanand, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Jain Sahitya

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Page 314
________________ . ३१६ जैनधर्म की चोटियोपर वने अनेक मन्दिरोंका दर्शन करनेके लिये प्रतिवर्ष हजारों दिगम्बर और श्वेताम्बर स्त्री पुरुष आते हैं । इसकी यात्राम १८ मीलका चक्कर पड़ता है और ८ घंटे लगते हैं। ___ कुलुआ पहाड़-यह पहाड जंगलमे है। गयासे जाया जाता है। इसकी चढाई २ मील है। इसपर सैकडों जैन प्रतिमाएं खण्डित पड़ी है। अनेक जैन मन्दिरोके भग्नावशेष भी पडे है। कुछ जैन मन्दिर और प्रतिमाएं अखण्डित भी है। कहा जाता है कि इस पहाडपर १० वें तीर्थङ्करशीतलनाथने तप करके केवल ज्ञान प्राप्त किया था। इण्डियन एन्टीक्वेरी (मार्च १९०१) में एक अंग्रेज लेखकने इसके सम्बन्धम लिखा था-'पूर्वकालमें यह पहाड़ अवश्य जैनियोका एक प्रसिद्ध तीर्थ रहा होगा, क्योकि सिवाय दुर्गादेवीकी नवीन मतिके और बौद्धमूर्तिक एक खण्डके अन्य सव चिह्न जो पहाइपर है, वे सव जैन तीर्थङ्करोंको ही प्रकट करते है। गुणावा-यह भगवान महावीरके प्रथम गणघर गौतम स्वामीका निर्वाणक्षेत्र है। गया-पटना (ई० आर०) लाईनमें स्थित नवादा स्टेशनसे डेढ मील है। पावापुर-गुणावासे १३ मीलपर अन्तिम तीर्थङ्कर भगवान महावीरका यह निर्वाणक्षेत्र है। उसके स्मारकस्वरूप तालावके मध्यम एक विशाल मन्दिर है, जिसको जलमन्दिर कहते है। जलमन्दिरम महावीर स्वामी, गौतम स्वामी और सघर्मा स्वामीके चरण स्यापित है। कार्तिक कृष्णा अमावस्याको भगवान महावीरके निर्वाण दिवसक उपलक्षमें यहाँ बहुत बड़ा मेला भरता है। राजगृही या पच पहाडी-~~-पावापुरीसे ११ मील राजगृही है। एक समय यह मगध देशकी राजधानी थी। यहाँ २०वें तीर्थकर मुनिसुन्नतनाथका जन्म हुआ था। राजगहीके चारो ओर पांच पर्वत है उनके वीचमे राजगही बसी थी। इसीसे इसे पचपहाड़ी भी कहते हैं । महावीर भगवानका प्रथम उपदेश इसी नगरीके विपुलाचल पर्वतपर

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