Book Title: Jain Dharm
Author(s): Sampurnanand, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Jain Sahitya

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Page 313
________________ विविध ३१५ . जाती है । उदाहरण के लिये प्रख्यात बद्रीनाथ तीर्थके मन्दिरमे भगवान् पार्श्वनाथको मूर्ति बद्रीविशालके रूपमे तमाम हिन्दू यात्रियोक द्वारा पूजी जाती है । उसपर चन्दनका मोटा लेप थोपकर तथा हाथ वगैरह लगाकर उसका रूप बदल दिया जाता है, इसी लिये जब प्रात काल श्रृङ्गार किया जाता है, तो किसीको देखने नही दिया जाता । क्या आश्चर्य है जो कभी वह जैन मन्दिर रहा हो और शकराचार्य के द्वारा इस रूपमे कर दिया गया हो, जैसा कि वहाँ के पुराने बूढ़ों के मुँह से सुना जाता है । अस्तु, 春 जैनधर्मके दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनो ही सम्प्रदायों के तीर्थस्थान है । उनमे बहुत से ऐसे है जिन्हें दोनो ही मानते पूजते है । और बहुतसे ऐसे है जिन्हें या तो दिगम्बर ही मानते पूजते है या केवल श्वेताम्बर; अथवा एक सम्प्रदाय एक स्थानमे मानता है तो दूसरा दूसरे स्थानमे । कैलाश, चम्पापुर, पावापुर, गिरनार, शत्रुञ्जय और सम्मेद शिखर आदि ऐसे तीर्थ है जिनको दोनो ही सम्प्रदाय मानते है । गजपन्था, तुङ्गी, पावागिरि, द्रोणगिरि, मेढगिरि, कुथुगिरि, सिद्धवरकूट, बड़वानी आदि तीर्थ ऐसे है, जिन्हे केवल दिगम्बर सम्प्रदाय ही मानता है । और इसी तरह आबूगिरि, शखेश्वर आदि कुछ ऐसे तीर्थ है जिन्हें श्वेताम्बर सम्प्रदाय ही मानता है । यहाँ प्रसिद्ध प्रसिद्ध तीर्थक्षेत्रोका सामान्य परिचय प्रान्तवार कराया जाता है बिहार प्रदेश सम्मेद शिखर - हजारीबाग जिलेमें जैनोका यह एक अतिप्रसिद्ध और अत्यन्त पूज्य सिंद्धक्षेत्र है । इसे दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनो ही } समानरूपसे मानते और पूजते है । श्री ऋषभदेव, वासुपूज्य, नेमिनाथ और महावीरके सिवा शेष बीस तीर्थ रोने इसी पर्वतसे निर्वाण प्राप्त किया था । २३ वे तीर्थंकर श्रीपार्श्वनाथके नामके ऊपरसे आज यह पर्वत 'पारसनाथ हिल' के नामसे प्रसिद्ध हैं । पूर्वीय रेलवेपर इसके रेलवे स्टेशनका नाम भी कुछ वर्षोंसे पारसनाथ हो गया है। इस पर्वत

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