Book Title: Jain Dharm
Author(s): Sampurnanand, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Jain Sahitya

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Page 302
________________ ३०४ जैनधर्म ने बुद्धि-कौशल और शस्त्र-कौशलसे उसे निवटाया । ये दीवार वडे धर्मात्मा थे। इन्होने १८६१ मे एक बहुत बडी विम्ब प्रतिष्ठ कराई थी। इस तरह संक्षेपमें कुछ जैनवीरोंकी यह कीर्तिगाथा है, ६ बतलाती है कि जैन धर्मानुयायी आवश्यकता पड़नेपर मरले बो मारनेके लिये भी तत्पर रहते हैं। क्योकि 'जे कम्मे सूरा ते धम् सूरा जो 'कर्मवीर होते हैं वही धर्मवीर होते है ऐसा शाल वाक्य है। २ जनपर्व दशलक्षण या पर्युषणपर्व जैनोंका सबसे पवित्र पर्व दशलक्षण पर्व है। दिगम्बर सम्प्रदायमे यह पर्व प्रतिवर्ष भाद्रपद शुल्का पंचमीसे चतुर्दशीतक तथा खे० में भाद्रकृ० १२ से भाद्रशु० ४ तक मनाया जाता है । इन दिनोंमे जैन मन्दिरों में खूब आनन्द छाया रहता है। प्रतिदिन प्रात कालसे ही सव स्त्री-पुरुष लान करके मंदिरोंमे पहुंच जाते है और बड़े आनन्दके साथ भगवानका पूजन करते है। पूजन समाप्त होनेपर प्रतिदिन श्री तत्वार्थसत्रके दस अध्यायोंमसे एक एक अध्यायका व्याख्यान और उत्तम क्षमा, मार्दद, मार्जव, शौच, सत्य, संयम, तप. त्याग, आकिंचन्य और ब्रह्मचर्य इन धर्मोमेंसे एक एक धर्मका विवेचन होता है। इन दस धर्मोंके कारण इस पर्वको दशलक्षणपर्व कहते है, क्योकि धर्मके उक्त दस लक्षणोंका इस पर्वमें खासतौरसे बाराधन किया जाता है। व्याख्यानके लिये वाहरसे बड़े बड़े विद्वान् बुलाये जाते हैं, और प्राय नभी स्त्री-पुरुष उनके उपदेगसे लाभ उठाते हैं। त्याग धर्मके दिन परोपकारी संस्थाओको दान दिया जाता है और नाश्विन कृष्णा प्रतिपदाके दिन पर्वकी समाप्ति होनेपर सब पुरुष एकन होकर परस्परम गले मिलते हैं और गतवर्षकी अपनी गलतियोंक

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