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इतिहास: हुआ। इस मंत्रीके शौर्यके कारण ही मारसिह अनेक विजय प्राप कर सका । श्रवणवेलगोला (मैसूर) के एक शिलालेखमे इसकी बड़ी प्रशंसा की गई है, घरमधुरन्सुर वीरमार्तण्ड, रणरंगसिंह ए त्रिभुवनवीर, वैरीकुलकालदण्ड, सत्ययुधिष्ठिर, सुभटचूडामणि आलि उसकी अनेक उपाधियाँ थी, जो उसकी शूरवीरता और धार्मिकताकतबतलाती है। चामुण्डरायने ही श्रवणवेलगोला (मैसूर) के विन्ध्यगिरि पर गोमटेशकी विशालकाय मूर्ति स्थापित कराई थी, जो मूर्ति आप दुनियाकी अनेक आश्चर्यजनक वस्तुमोमें गिनी जाती है । वृद्धावस्थामय चामुण्डरायने अपना अधिकांश समय धार्मिक कार्योमे बिताया चामुण्डराय जैनधर्मके उपासक तो थे ही, मर्मज्ञ विद्वान् भी थे। उनका कनड़ी भाषाका त्रिषष्ठि-लक्षण महापुराण प्रसिद्ध है। स्त र भी उनका बनाया हुआ चारित्रसार नामक ग्रन्थ है। चामुण्डरायकई गणना जैनधर्मके महान् उन्नायकोंमें की जाती है। इनके समयमे जर साहित्यकी भी श्रीवृद्धि हुई थी। सिद्धान्त ग्रन्थोंका सारभूत श्रीगोई मट्टसार नामक महान् जैन ग्रन्थ' इन्हीके निमित्तसे रचा गया था । और उन्हीके गोमट्टराय नामपर इसका नामकरण किया गया था । यह कनडीके प्रसिद्ध कवि रत्नके आश्रयदाता भी थे। ___ गंगराज परिवारकी महिलाएं भी अपनी धर्मशीलताके लिये प्रसिद्ध है। एक प्रशस्तिमें गंग महादेवीको 'जिनेन्द्र के चरण कमलों में लुब्ध भ्रमरी' कहा है । यह महिला भुजबल गंगाs: मान्धाता भूपकी पत्नी थी। राजा मारसिंहकी छोटी बहिनका ना: सुग्गिपव्वरसि था । यह जैन मुनियोंकी बड़ी भक्त थी और उन्ह सदा आहार दान किया करती थी। ।
जब चोल राजाने ई० स० १००४ में गंगनरेशकी राजधानी तलकादको जीत लिया, तबसे इस वंशका प्रताप मंद हो गया। वादको भी इस वंशके राजाओने राज तो किया, किन्तु फिर वे उठ नहीं सके।' इससे जैनधर्मको भी क्षति पहुंची।