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इतिहास धर्मका पोषक था किन्तु इसके राजा विभिन्न मतवालोके प्रति उदारताका व्यवहार करते थे। तथा इस राज्यके उच्च पदस्प कर्मचारियोमे अधिकाश जैनधर्मावलम्बी थे। इसलिये राजाओको भी जैनधर्मका विशेष ख्याल रखना पड़ता था ।
। __हरिहर द्वितीयके सेनापति इरुगप्प कट्टर जैनधर्मानुयायी थेउन्होंने ५६ वर्ष तक विजयनगर राज्यके ऊंचेसे ऊंचे पदोको योग्यता पूर्वक निवाहा और जैनधर्मकी उन्नतिके लिये वरावर प्रयत्न करतप रहे। इरुगप्पके अन्य सहयोगियोने भी जैनधर्मकी पूरी सहायता काप और उसके प्रचारमे काफी योगदान दिया ।
विजयनगरकी रानियां भी जैनधर्म पालती थी । श्रवणवेल-ल गोलके एक शिलालेखसे देवराय महाराजकी रानी भीमादेवीका जैन होना प्रकट है।
१३६८ के एक शिलालेखसे पता चलता है कि जैनोने का.. प्रथमसे प्रार्थना की कि वैष्णव लोग जैनोके साथ अन्याय करत है। राजाने काफी जाँच पडतालके बाद जैनों और वैष्णवोंमे मेल करा दिया तथा यह आज्ञा प्रकाशित की__ "यह जैन दर्शन पहलेकी ही भाँति पञ्च महाशब्द और कलशका अधिकारी है। यदि कोई वैष्णव किसी भी प्रकार जैनियोको क्षति पहुँचावे तो वैष्णवोको उसे वैष्णवधर्मकी क्षति समझना चाहिये। वैष्णव लोग जगह-जगह इस बातकी ताकीदके लिये सन कायम करें। जब तक सूर्य और चन्द्रका अस्तित्व है तब तक वैष्णव लोग जैन दर्शनकी रक्षा करेंगे । वैष्णव और जैन एक ही है उन्ह अलग अलग नही समझना चाहिये । "वैष्णवो और जैनोसे जो कर लिया जाता है उससे श्रवण वेलगोलाके लिये रक्षकोकी नियुक्ति की जाय और यह नियुक्ति वैष्णवोके द्वारा हो। तथा उससे जो द्रव्य बचे उससे जिनालयोकी मरम्मत कराई जाये और उनपर चूना पोता जाये । इस प्रकार वे प्रतिवर्ष धनदान देनेसे न चूकेगे और यश