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जनधर्म
Tा जाता है। जनमुतिया २७ भोपडा फहरका गया।
जाओ अन्तिम राजा था। यह महमूद गजनीके समयमे हुआ था। । बरेली जिलेमे अहिच्छत्र नामका एक जैन तीर्थस्थान है। इस पर राज्य करनेवाला एक मोरध्वज नामका राजाहो गया है जो जैन तिलाया जाता है। यहां किसी समय जैनधर्मकी बहुत उन्नति थी। यहाँ अनेक खेडे है जिनसे जनमूर्तियां मिली है। । इसी तरह इटावासे उत्तर दक्षिण २७ मीलपर परवा नामका एक स्थान है जहाँ जैनमन्दिरके ध्वस पाये जाते है। डा० फहररका कहना है कि किसी समय यहाँ जैनियोका प्रसिद्ध नगर आलभी वसा था। वालियरके किलेमे विशाल जैनमूतियोकी बहुतायत वहाँके प्राचीन राजघरानोका जैनधर्मसे सम्वन्ध सूचित करती है। । इस प्रकार उत्तर भारतमें जैन राजाओका उल्लेखनीय पता न चलने पर भी अनेक राजामोका जैनधर्मसे सहयोग सूचित होता है और पता चलता है कि महावीरके पश्चार उत्तर भारतमे भी जनवर्म खूब फूला फला।
८. दक्षिण भारतमें जैनधर्म । उत्तर भारतमे जैनधर्मकी स्थितिका दर्शन करानेके पश्चात् दक्षिण भारतमे आते है । चन्द्रगुप्त मौर्य के समयमें उत्तर भारतमे १२ वर्षका भयंकर दुर्भिक्ष पडनेपर जैनाचार्य भद्रवाहुने अपने विशाल जनसंघके 'साथ दक्षिण भारतकी ओर प्रयाण किया था। इससे स्पष्ट है कि दक्षिण भारतमे उस समय भी जैनधर्मका अच्छा प्रचार था और भद्रबाहुको पूर्ण विश्वास था कि वहां उनके सघको किसी प्रकारका कष्ट न होगा। यदि ऐसा न होता तो व इतने बड़े संघको दक्षिण भारतकी ओर ले जानेका साहस न करते। जैन संघकी इस यात्रासे दक्षिण भारतमें जैनधर्मको और भी अधिक फलने और फूलनेका अवसर' मिला।
श्रमण संस्कृति वैदिक संस्कृतिसे सदा उदार रही है, उसमें भाषा और अधिकारका वैसा बन्धन नहीं रहा जैसा वैदिक संस्कृतिमे