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जनधन
संस्कृतमे मत्तविलास नामका एक प्रहसन है जो पल्लवराज महेन्द्रवमाका बनाया हुआ कहा जाता है । इस ग्रन्थमे उस समयक प्रचलित सम्प्रदायोकी हंसी उड़ाई गई है, जिनमें पाशुपत, कापालिक और एक बौद्ध भिक्षुको हसीका पात्र बनाया गया है। इनमे जैनोको सम्मिलित नहीं किया गया है। इससे पता चलता है कि जिस समय महेन्द्र वर्माने इस ग्रन्थको रचा उस समय वह जन था तथा पीछसे शव होगया क्योकि शैव-परम्परामें ऐसी ख्याति है कि शैव साधु अप्परने महेन्द्रवर्माको गैव बनाया था । अत. कदम्बोंकी तरह चालुक्य भी जनधर्मके प्रमुख नाश्रयदाता थे । चालुक्याने अनेक जैनमन्दिर बनवाये, उनका जीर्णोद्धार कराया, उन्हें दान दिया और कनडीके प्रसिद्ध जैन कवि आदि पम्प जैसे कवियोंका सन्मान किया।
इसके सिवा इतिहाससे यह भी पता चलता है कि कर्नाटकमें महिलामोंने भी जनवर्मके प्रचारमें भाग लिया है। इन महिलाओमे जहाँ राजवरानेकी महिलाएं स्मरणीय है वहाँ साधारण घरानेकी स्त्रियोकी सेवाएं भी उल्लेखनीय है। । सबसे प्रथम परमगूलकी पत्नी कंदाच्छिका नाम उल्लेखनीय है। उसने श्रीपुर नामक स्थानके उत्तरी भागमें एक जैनमन्दिर बनवाया था। परमगूलकी प्रार्थनापर गंगनृपति श्रीपुत्पने इस मन्दिरको एक ग्राम तथा कुछ अन्य भू-भाग प्रदान किये थे। इस महिलाका गंग राजपरिवारपर काफी प्रभाव था। दूसरी उल्लेखनीय महिला जक्कियब्बे है । यह सत्तरस नागार्जुनकी पत्नी थी जो नागर खण्डका शासक था। पतिके मरनेपर राजाने उसकी जगह उसकी पत्लीको नियुक्त किया। पत्नीने अपूर्व साहस और वीरताका परिचय दिया और सल्लेखना पूर्वक प्राणोका त्याग किया।
ईसाकी दसवी गतीमें पश्चिमी चालुक्य राजा तैलपका १ साउथ इण्डियन हिस्ट्री एण्ड कल्चर, मा० १, पृ० ५८४ । २ स्मिय-जी हिस्ट्री नाफ इण्डिया, पृ०४४४।