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इतिहास गये शिलालेखका उल्लेख पहले किया गया है। उस लेखके अनुसा खारवेल जैन था। बल्कि उड़ीसाका सारा राष्ट्र उस समय मुख्यत जैन ही था। स्व० के० पी० जायसवाल लिखते है
'जैनधर्मका प्रवेश उड़ीसामे शिशुनागवंशी राजा नन्दवर्धन समयमे हो गया था। खारवेलके समयसे पूर्व भी उदयगिरि पर्वतपा' अर्हन्तोके मन्दिर थे, क्योंकि उनका उल्लेख खारवेलके लेखमे आय । है। ऐसा प्रतीत होता है कि खारवेलके समयमे जैनधर्म कई शता ब्दियो तक उडीसाका राष्टीय धर्म रह चुका था।' _____ महाराजा खारवेलने १५ वर्षकी अवस्थामे युवराज पद प्राप्त किया और २४ वर्षको अवस्थामे इनका महाराज्याभिषेक हुआ से उसके बाद दूसरे ही वर्ष उसने सातकणिकी परवाह न करके पश्चिम देशको अपनी सेना भेजी और उस सेनाने मूषिक नगरको परास्त किया। चौथे वर्ष खारवेलने फिर पश्चिमपर चढाई की अर' रठिकोके भोजक अपने मुकुट और छत्र-श्रृङ्गार छोडकर उसके चरणो पर झुकनेको बाध्य हुए। वास्नीका यवनराजा एक भारी सेना ले मध्यदेशपर चढ आया। खारवेलने आगे बढ़कर दिमितको निकाल भगाया। मध्यदेशसे यवनोंको पूरी तरह खदेडनेका श्रेय खारवेलको ही है। वारहवे वर्षमे उसने पञ्जावपर चढ़ाई की। सातकर्णीके, राज्यपर दो चढाइयाँ करने और यवनराज दिमितको मध्यदेशसे निकाल भगानेके बाद खारवेल अपने समयके सब भारतीय राजाओमे प्रमुख माना जाने लगा। अभी तक उसने अपने देश कलिंगके पच्छिमी पडोसी राज्य मूपिक और महाराष्ट्रपर तथा उत्तर पडोसी राज्य मगधपर चढाइयों की थी। अब उसने उत्तर और दक्खिनमे दूर दूर तक दिग्विजय करना शुरू किया। उसकी शक्ति भारतके अन्तिम छोरो तक पहुंच गई । बारहवे वर्ष उसने उत्तरापथके राजामोको त्रस्त किया। मगधपर चढ़ाई करके मगधके राजा पुष्यमित्रको पैरो गिर
१ ज० वि० उ०रि० सो० जिल्द ३, पृ० ४४८ । -