Book Title: Jain Bhajan Muktavali Author(s): Nyamatsinh Jaini Publisher: Nyamatsinh Jaini View full book textPage 5
________________ ..14sa nternme -rai- --10 stem ॥ श्री बीनगगायनमः॥ न्यामतमिह रचित जैन ग्रंथमाला। (अंक ५) जैन भजन मुक्तावली A मात-नाट पि RK PाEिmiri measur-MAIN प्रभू तुमहो तारनतरन हमें भी पार पाओ जी देश भवसिन्ध्र अगम अपार पार इसको नहीं आया जी। मेरी नव्या वीच मंझधार डूबती है लो बचावो जी ॥१॥ रागादि घटा चहुंओर तिमिर आखों में छायो जी। निजपर नहीं सूझे नाथ मुझे रस्ते तो लगाओ जी ॥२॥ : आगयो तसकर परमाद ज्ञान विज्ञान भुलाओ जी! है निराधार न्यामन अव आयो मतदर लगाओ जी ॥३॥ घान-दयू में पार है. मु. Ti Ter Art : TARA जिनराज हमम यश तेग गाया नहीं जाना। यहाँ ऐ तो जरा भी दिलाया नहीं जाना ||१|| DamanPage Navigation
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