Book Title: Jain Bhajan Muktavali
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 21
________________ न्यामत विलास पढ़े वेदो पुरान, अंजीलो कुरान, हाय तूने पढ़ा नहीं अपना जिकर । तू है निपट नादान, मेरे प्यारे अयान, लिया दुनिया को छान, नहीं देखा स्वघर ॥ ३ ॥ तुही आतम स्वरूप, परमातम स्वरूप, तुही भवशिव स्वरूप, नहीं तुझको खबर | न्यायमत दिल जमा, सारी व्याधी हटा, तु समाधी लगा, होवे माहिर ॥ ४ ॥ २७ चाल - कबसे तुममें यह शरारत आ गई || ग़ज़ल || कैसे तुमपर यह जहालत छागई । कैसे बदमस्ती शरारत आगई ॥ टेक ॥ तुमतो चेतन हो निराकार अय जिया । कैसे जड़ पुदगल की सोहबत भागई ॥ १ ॥ रूप अपना किस लिये देखा नहीं दूसरों पे क्यों मुहब्बत आगई ॥ २ ॥ सिर झुकाता क्यों नहीं जिनराज को । ऐसी क्या तुम में निज़ाकत आगई ॥ ३ ॥ किस तरह से तुझको समझाऊं दिला । न्यायमत आफत मुसीबत आगई || कैसे ० ||४|| 3 १७ "

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