Book Title: Jain Bhajan Muktavali
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini
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न्यामत विलास
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चाल-जै जगदीश हरे॥ (मानी ) जय अंतरयामी जय अंतरयामी। दुखहारी सुखकारी त्रिभुवन के स्वामी ॥ जय० ॥ टेक ।। नाथ निरंजन, सब दुख भंजन, संतन आधारा । पाप निकंजन, भवजन सम्पति दातारा ॥ जय० ॥१॥ करुणा सिंधु दयालु दया निधि, जयजय गुणधारी । बंछित पूरण श्री जिन सब जन सुखकारी ॥ जय० ॥२॥ ज्ञान प्रकाशी, शिवपुरबासी, अविनाशी अविकार । अलख अगोचर शिवमय, शिवस्मणी भरतार ॥ जय० ॥३|| बिमल कतारक, कलमल हारक, तुमहो दीन दयाल । जयजय.कारक, तारक पट जीवन रिछपाल ॥ जय० ॥ ४॥ न्यामत गुणगावे, पाप नशावे, चरणन सिरनावे । पुन पुन अर्ज सुनावे शिवकमला पावे ॥ जय० ॥५॥
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चाल-भक्ती से मुफ्नी पायोग ।
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समाकित विन फल नहीं पावोगे।
नहीं पावोगे पछतावोगे ।। टेक ॥ चाहे निर्जन बनतप करिये, विन समता दुख दाहोगे ॥१॥ मिथ्या मारग निश दिन सेवो, कैसे मुक्ती पावोगे ॥२॥
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