Book Title: Jain Bhajan Muktavali
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 25
________________ न्यामत विलास दिया द्रोपद को हार, दुःशासन बदकार ॥ हरा द्रोपद का चीर लाज आई नहीं || वि० || २ || वक राजा ने मांस, खाया करके हुलास । पड़ी बिपता की फाँस रोया लेले के स्वाँस | कोई आकर के धीर बँधाई नहीं || विपय० || ३ || देखो यादव सुजान, किया मदिरा का पान । हुए ऐसे अयान, खोई जलकर के जान || कोई तदबीर उनकी बन आई नहीं || विषय० ||४|| चारुदत्त प्रवीण, हुआ गणिका में लीन । ब्रह्मदत्त सुराय, मृग मारे वन जाय ॥ शिवदत्त अजब, किपा चोरी का दव | ऐसे सातों सुबीर, सही विषयों की पीर ॥ हुई न्यामत किसी की रिहाई नहीं || विपय० ॥ ५ ॥ ३४ चाल चल चल गोरी योवना उभारे न चल || २१ चलचल प्यारे मुंह को उभारे न चल || टेक || ठोकर लगेगी ज़मी पै गिरोगे । Giant Does free, निकल, निकल प्यारे मुंह को उभारे न वल ॥ १ ॥ फिरते हैं रस्ते में जीव अनन्ते । जागी कड़ी मकोड़ी कुचल, कुचल || कुचल० || ४ ||

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