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न्यामत बिलास समझ नहीं फिर तू पछताएगा ॥ ६॥ . यह अच्छी नहीं भूल तू छोड़ दे। श्री गुरु पैजा, न्यायमत सीखले ॥ ७॥
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चाल-सारठ अधिक स्वरूप रूप का दिया न जागा मोल । . कर सकल विभाव अमाव भावसे करले पर उपकार ।। टेक ॥ पाप पुन्य से दुख सुख होवें सो सब जग व्योहार। त तिहुं जगतिहुं काल अकेला, देखन जानन हार ॥१॥ देह संयोग कुटुम्ब कहायो, सोतन अलग निहार । हम न किसी के कोई न हमारा, झूठा है संसार ॥२॥ राग भावसे सज्जन माने, दुर्जन द्वेष विचार । यह दोनों तेरे नहिं न्यामत, तू चेतन पदधार ॥ ३ ॥
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चाल-नाटकं ॥ दहीवाली का तौर दिखाना ॥ सबको जय जय जिनेन्द्र सुनाना। आहा समा है कैसा बना ।। सब० ॥ टेक || श्री जिनवर का ध्यान लगायो । जिसने दिया, हमको जगा, मोह निद्रा में था सबजमानाः १॥ सम्यक दरशन दिलमें धारो। जिससे जिया, होगा तेरा. सीधा मुक्ती के रस्ते.को जाना॥२॥ स्याहाद पर ईमान लावी। जिससे करे, इक दम मिटे, झूठी युक्ती का कल्पित बहाना ॥३॥ नय परमाण से तहकीक करलो। परदा हटा, पक्ष मिटा, यही न्यामत्त जिनेन्द्र बखाना ॥ ४ ॥
॥ इति श्री जैन भजन मुक्तावली समाप्तम् ॥
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