Book Title: Jain Bhajan Muktavali
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 39
________________ न्यामत विलास कहीं पूजे भूत अरु ऊत शीतला अरु देवी सारी । कहीं पूजे पीर फ़क़ीर कोधी अरु ममताधारी || ४ || कहीं पूजी सेढ मसानी, काली नागभवनवारी । कहीं पित्रश्राद्ध कराए जिमाए बहु नर अरु नारी ॥ ५ ॥ कहीं भैरव दानाशेर मनाए क्षेत्रपाल भारी । कहीं जा पूजागूगा ख्वाजा अरु कुतव गोसभारी ॥ कहीं गंगा जमुना फिरा डोलता ज्वाला जटधारी । कहीं बड़ पीपल पशुचाक मनाए मिल सब नरनारी ॥ ७ ॥ कहीं भैंसे बकरे मार चढ़ादिए करी दुराचारी | कहीं बैल बुटेर कलीक वेद में लिखकर दिए जारी ॥ ८ ॥ कहीं पूजे बंदर मस्तकलंदर धूर्त जटाधारी । तज न्यामत यह पाखंड गई क्यों अक्ल तेरी मारी ॥ ९ ॥ ६ ॥ ५८ चाल ---इन्दर सभा | अरे लालदेव इस तरफ़ जल्द भा अरे सुन तो चेतन जरा देके ध्यान । कि होता है कुछ तुझको अपना भी ज्ञान ।। १ ।। अविनाशी है चेतन है ज्ञाता है तू । बिनाशी पै नाहक लुभाता है तू ॥ २ ॥ है अफसोस चेतन तेरी सीख पर । कि आशिक हुआ तू बिनाशीक पर ॥ ३ ॥ बनाया अरे तूने बिपयों को यार । लिए फिरता है दुष्ट कर्मों को लार ॥ ४ ॥ उड़ाता है क्यों खाक नरभव की तू । -करे है तलाश और किस भवकी तू ॥ ५ ॥ मनुप देह फिर तू नहीं पाएगा । ३५

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