Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
THE FREE INDOLOGICAL
COLLECTION WWW.SANSKRITDOCUMENTS.ORG/TFIC
FAIR USE DECLARATION
This book is sourced from another online repository and provided to you at this site under the TFIC collection. It is provided under commonly held Fair Use guidelines for individual educational or research use. We believe that the book is in the public domain and public dissemination was the intent of the original repository. We applaud and support their work wholeheartedly and only provide this version of this book at this site to make it available to even more readers. We believe that cataloging plays a big part in finding valuable books and try to facilitate that, through our TFIC group efforts. In some cases, the original sources are no longer online or are very hard to access, or marked up in or provided in Indian languages, rather than the more widely used English language. TFIC tries to address these needs too. Our intent is to aid all these repositories and digitization projects and is in no way to undercut them. For more information about our mission and our fair use guidelines, please visit our website.
Note that we provide this book and others because, to the best of our knowledge, they are in the public domain, in our jurisdiction. However, before downloading and using it, you must verify that it is legal for you, in your jurisdiction, to access and use this copy of the book. Please do not download this book in error. We may not be held responsible for any copyright or other legal violations. Placing this notice in the front of every book, serves to both alert you, and to relieve us of any responsibility.
If you are the intellectual property owner of this or any other book in our collection, please email us, if you have any objections to how we present or provide this book here, or to our providing this book at all. We shall work with you immediately.
-The TFIC Team.
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
Sharmapotisher
न्यामत सिंह चिंत जैन ग्रंथमाला.
HO
..
makedindia
Amaindede.
remerol
....
Pademimanwwwesterone
जन भजन मक्तावली
PanorandpasetwePa
..
H
मिली योद, मिर. .. T Surtar viirite oration
म, पिाठी के मार
भी कोई नियम सम्म २४६ : amerikaariranrrentral
R
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________
..14sa
nternme
-rai-
--10
stem
॥ श्री बीनगगायनमः॥
न्यामतमिह रचित जैन ग्रंथमाला।
(अंक ५)
जैन भजन मुक्तावली
A
मात-नाट पि RK PाEिmiri
measur-MAIN
प्रभू तुमहो तारनतरन हमें भी पार पाओ जी देश भवसिन्ध्र अगम अपार पार इसको नहीं आया जी। मेरी नव्या वीच मंझधार डूबती है लो बचावो जी ॥१॥ रागादि घटा चहुंओर तिमिर आखों में छायो जी। निजपर नहीं सूझे नाथ मुझे रस्ते तो लगाओ जी ॥२॥ : आगयो तसकर परमाद ज्ञान विज्ञान भुलाओ जी! है निराधार न्यामन अव आयो मतदर लगाओ जी ॥३॥
घान-दयू में पार है. मु. Ti Ter Art : TARA
जिनराज हमम यश तेग गाया नहीं जाना। यहाँ ऐ तो जरा भी दिलाया नहीं जाना ||१||
Daman
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________
न्यामत बिलास
गणधर भी बहुत कथ चुके आखिर यह कहगए । यह भेद है वह भेद बताया नहीं जाता || २ || है क्या मजा इन्द्र चन्द्र कुछ भी लिख सकें । -लिखना तो क्या क़लम भी उठाया नहीं जाता ॥ ३ ॥ हैं गुण अनन्त आरपार पा नहीं सकते । महिमा अपार सार सुनाया नहीं जाता ॥ ४ ॥ न्यामत को ज्ञान दीजे मगन हो भजन करे । भक्ती का भाव हमसे हटाया नहीं जाता || ५ ||
३
चाल - नाटक || य सनम व ज़रा मुझे देता बता कहाँ जाये छिपा नहीं आता नज़र ||
करो भगवत का ध्यान, वोह है सबसे महान, उसे है सब का ज्ञान कहा जिन्नो बशर । वाकी शक्ती अपार, वाकी महिमा अपार,
गए गणधर भी हार नहीं पाई खबर || १ || किया करमों का नाश शिव मारग प्रकाश, करो उसकी तलाश, आवे दिलको सबर | छोड़ो झूठे कुदेव, करो अरिहंत सेव,
मिले तुमको स्वमेव, मुक्ती की डगर ॥ २ ॥ जरा करके खयाल, सुमती को सँभाल, कुमती को निकाल, करो उसका जिकर ।
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________
dama
-
-
न्यामन विलाम यह न्यामत आधीन, जिन चाना में लीन, __ हमें मना यकीन, कभी होगी नाना
॥
an-MAntarnatamnna
चान-मस्नान Are Aaunt
-
adriNuwwwwewere-~
मोक्ष मारग में प्रभु तुमने लगाया हमको । तत्व के अर्थ का शनि कराया हमको ।। : ।। वीतराग और हितोपदेशी जगन के नाना । यह विगंशन है तेरे साफ जिनाया हमको ॥२॥ ठीक चारित्र दरश ज्ञानका समुदाय महा। मोक्ष जाने का है रस्ता मो दिखाया हमको ॥ ३ ॥ मोह मिथ्यात की निना में पड़े माने थे । आपने दिव्य धनी से है जगाया हमको ।। ।। जीव फल आपसे भाग है करमका अपन । फलका दाता न कोई और बताया हमको ॥ ५॥ भूले फिरते थे विषय भोग में न्यामन हमनी । धन्य है आपको जो याद दिलाया हमको ।। ६ ।
गान- TRAwar
अधार मोरे स्वामी भवदधिस का मुझको पार ॥॥ वहंगन में रहता फिग मोरे म्मामी दुवई गई है. अगर
अवार० ॥१॥
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________
४
न्यामत बिलास
मिथ्या अंधेरा मगर मोहने घेरा, कर्मों के विकट पहार |
अवार० || २ ||
सातों विषय क्रोध मद लोभ माया, आएलुटेरे
दहार ।
अबार० ॥ ३ ॥
न्यामत की बेड़ी भँवर में पड़ी है, बेगी से लोना उभार ।
अवार० ॥ ४ ॥
६
चाल - न लेते खबरिया हमारी रे || दादरा ||
लीजो लीजो खबरिया हमारी जी । हमारी जी हमारी जी, लीजो लीजो खबरिया हमारी जी ॥ टेक घोके से आगये हैं कुमतिया की चाल में | रक्खा है हम को बाँध के कर्मों के जाल में ॥१॥
बीता अनाद काल हाल कह नहीं सकते । जो दुख हमें दिये हैं वो अब सह नहीं सकते || २ ||
॥
तन धनका नाथ कुछभी भरोसा मुझे नहीं । माता पिता भी कोई संगती मेरे नहीं ॥ ३ ॥ सच है कि हैं संसार में कोई न किसी का । न्यामत को सिवा तेरे भरोसा न किसी का || ४ ||
७
चाल--है सोरठं अधिक सरूप रूपका दिया न जागा मोल ॥
प्रभु हगे मेरा परमाद मुझे परमाद सताता है || टेक ||
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________
--
न्यामन विनाम ; भोरमा पूजा का बला मोजाना है। साँझ समय सामायक करना याद न आना है ॥ १ ॥ गुमभक्ति अम शाम्र स्वाच्या वन नहीं आता है
तप मंयम और दान का दना मन नहीं भाना है ॥ ॥ - यह पट कम श्रावक जिन शामन दाशाना है।
एक नहीं पूरा होता दिन वीता जाना है ॥२॥ पाताह धर्मार्थ काम शिव जो शाणाता है । दो शक्ती दीनानाथ सदा न्यामत गुन गाना है ॥ ४ ॥
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
-
--
-
पार--मुस्ता होने का प्रप कामगार न TYPE ||जय महावीर धरम नीर पिलानेवाले। | काल विकाल में शिव मार्ग दिखाने वाले ॥१॥ मापने ज्ञान से परघट किया जिन शासन को । सब विपक्षी काही युक्ती से हटाने वाले ॥२॥ था भरम कोन है इस जगका बनाने वाला। हे स्वयं सिद्ध यता भ्रम मिटाने वाले ॥ ३ ॥ सात के तत्त्व दरव सारे अनादी हैं अनन्त । बयवत्पाद ध्रव भेद बताने वाले ॥2॥ अर्पित नर्पितहि सिद्ध होता है वस्तु का साए । नय व परमाण से यह वात जिनाने वाले ॥ ': 1) म्यादवादादि से मंडन किया जिनमन न्यामत । मारे मत जीनके जिननाम वगन बान 16 ॥
-
-
-
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________
न्यामत बिलासं
-
चाल--को जय अंबे गौरी ॥ (आर्ती)
-
जय जिनवर देवा, जय जिनवर देवा । हित उपदेशी सबके, हितउपदेशी सबके, बीतराग देवा ।
जय० ॥ टेक॥ . | सकल ज्ञेय ज्ञायक तदपि हो, निज आनन्द रसलीन। सो जिनेन्द्र जयवंतो, अरिस्जरहस बहीन ॥ जय० ॥१॥ मोह तिमर मिथ्या तम हरता, ज्यो दिनकर परकाश। तुमरे नाम ध्यान से, होत करम का नाश ॥ जय० ॥ २॥ तुम जग भूषन रहित बिदूषन, तुम सबके सरताज । भव दधि सागर माँही, तारण तरण जहाज ।। जय० ॥३॥ तुममन चिंतत तुम गुण सुमरत, निज पर बस्तु विवेक । प्रगटे बिघटे आपद, छिनमें एक अनेक ॥ जय० ॥४॥ तुम अविरुद्ध विशुद्ध सुबुद्धी, चेतन सिंद्ध सरूप । परमातम परमेश्वर पावन, परम अनूप ॥ जय० ॥५॥ जो तुम ध्यावै शिव सुख पावै, मेटे सकल कलेश । निजगुण धारण कारण न्यामत नमत जिनेश ॥ जय० ॥६॥
चालवारीजाउंरे साँवरिया तुमपर वारनारे ॥
तनमन सारेजी साँवरिया तुमपर वारनाजी, तुमपर
. वारनाजी ॥ तन०॥टेका
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________
motastfeedoandamaneuvanan
ema
manaparam
.-
-
rant
raarueepunwarPurnlain
.
.
.
-
-
न्यामन बिलाम बालापन कम निवास, अगनी जस्ता नाग बाग। बैरी करमन मार नप बल धाग्नाजी । तन०॥ १॥ जीवा जीव दस्व बतलाए, सब जीवन के मम्म मिटाये । शिव मारग दरसायो दुव परिहानाजी । नन ॥२॥ स्यादवाद सतभंग मुनायो, नयएमाण निश्चय करवाया। झूठमत किये खंडन मत को धारनाजी । तन०॥ न्यामत जिन पारम गुणगाव, पुन पुन चानन माम नया । बीतराग सर्वज्ञ तुही हितकारनाजी ।। तन० ॥ ४ ॥
-
-
-
-
-
-
--
-
-
-
-
aPN
w
११
--u
-
-
--
---
चान-(दाला आना जगाद में समया टोला सानो जगानोद में, try t;
-
--
--
-
ananuman
-
Happam
हमारे स्वामी वार क्यों लगाई मेरी बार में | टेक ॥ • खड़ी व्याकुल पुकारी द्रोपद, चीर को बताया दरबार में ।
हमारे० ॥ १॥ पड़ी अगन मंझारी सीता, जलकर डाग पर चारमें ।
हमारे० ॥२॥ करो मेरी भी सहाई स्वामी, नव्या तो पड़ी है मंझधार में।
हमारे० ॥३॥ लख ऐसी तेरी महिमान्यामत. अरज गुजारी माकार में। 1. हमारे० ॥ ४॥
mahamPRAJAPanee
-
-
-
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________
-
-
न्यामत बिलास
१२
चाल- भान पाली श्रीमती जननी सुन मायारी॥
-
-
आज मानों विघन हरन धन छाए जी ॥ टेक ।। शांत स्वरूप लखो जिनतेरो, शांति सुधा बरसायेजी।
आज०॥ १॥ मन दादुर भवबनमें प्यासो, तृश्ना कलुष मिटायेजी ॥
आज०॥२॥ भागे रोग सोग सबमेरे, आनंद उरन समायेंजी ।।
आज०॥३॥ निरखि श्रीजिन आनन भानन, भ्रमतम घाननसायेजी। . आज०॥४॥ न्यामत समकित सम्पत पाई, जिन चरनन चितलायेजी। आज० ॥५॥
.. १३ चाल-तुम बोलो या न बोलो आशक तो हो चुका हूं.' करो पार नैय्या मेरी, डूबा में जारहाहूं ॥ टेक ॥ भवसिन्धु है अपारा, जिसका न.वारपारा ।
एजी हैरत में आरहाहूं ॥१॥ मदलोभ क्रोध माया, तूफान सिर पे आया ।
चकर मैं खारहाहूं ॥२॥ मिथ्यात अंधेर छाया, रस्ता,मेरा भुलाया, : . "
उलटा मैं जारहा ॥३॥
-
-
-
Page #13
--------------------------------------------------------------------------
________________
A
mravenue
-
न्यामत विनाम : परमाद चोर आया, पुरुषार्थ धन चुगया,
आलम में आग्हा हूँ ॥2॥ तारण तरण तुहीं है, भव दुम्ब हाण तुहीं है,
निश्चय में लारहाई ॥५॥ न्यामत है मझधास, ट्रक दीजियो सहारा,
में सर झुका रहा है ॥६॥
११ जान-गुम पिक दमन भैय्या नाय नाम UNITE: | अब तुम विन दीनानाथ दयानिधि कान मुने मेरी : टेक ॥ में मतिहीन महाहद वादी तुम त्रिभुवन राई । भवभव के प्रभुतुम जगनायक अरज मुना मेरी ॥१॥ इस जगमें सब स्वास्थ साधी झुठी मेग मरी । संकट में प्रभु तुम ही सहाई शरण गही तेग ॥ २॥ न्यामत श्री जिन के गुनगावे वरनन सीम नवाई। भरमत हूं आसार जगत में मेटो भव फेरी ॥ ३॥
meanin
। घाल- चमन मापन हूँ फिनना बादामा सान In Har) तू ज्ञाता दृष्टा है सब का, सुगमनेता काम भेना | टेक ॥ तू अविनाशी चिन मृरत है, अनन्त चतुष्टय पग्नि है, सुखकारी है, दुखकारी है, हाहाँ नू जगजनता है। 1. तूने शिवमारगदरशाया, धरम बतलाया. लगाया गाने में !
-
Page #14
--------------------------------------------------------------------------
________________
१०
न्यामत बिलास जनमनरंजन, सब दुख भंजन, जनम निकंजन तु निरंजन
क्या क्या क्या ||
तू ज्ञाता दृष्टा है सबका सुगम नेता करम भेता ||
१६ चाल - रघुवर कौशल्या के लाल मुनि को यज्ञ रचाने वाले ॥
सन्मति भवसागर के माँह नैय्या पार लघाने वाले ॥टेक॥ आए पावापुर के बीच, मारे बैरी आठों नीच । अपने धनुष ध्यान को खींच, करम के कोट उड़ानेवाले ॥१॥ लेकर चक्र सुदर्शन ज्ञान, करके मिथ्या मत को भान । जितलाकर नयमति परमाण | मुक्ति की राह बतानेवाले ||२||
१७
चाल - ऐसे तुमसे ऐरे गैरे मैंने लाखों देखे भाले (नाटक)
लेलो श्री जिनवर का शरणा जल्दी मुक्ति जानेवालो ||टेक॥ सत्य धर्मका टिकट कटालो, निजगुण सामाँ बुक करवालो | शिवपुर की बिलटी करवालो ॥ श्री० ॥
दर्शन ज्ञान चरण की गाड़ी, आती है वह आती है । जो सीधी शिवनगरी को प्यारे जाती है वह जाती है | आवो आवो जल्दी आवो, आश्रव बंध महसूल चुकावो । स्यादवाद को टिकट दिखावो, चौदह दरजों में चढ़नावो ॥ अंजन ध्यान का अटल, कोलकमका जल ।
Page #15
--------------------------------------------------------------------------
________________
न्यामत विलास फेरो भावना की कलं, गाड़ी जायगी निकल । अजी छोड़ो छोड़ो हटको छोड़ो, झूठी युक्ति करने वालो ।।
श्रीजिन ॥
चाल-अफीम तेरे सट्टे ने पागल बना दिया।
इस मोह नींद में तुम्हें सोना न चाहिये । सोना न चाहिये तुम्हें सोना न चाहिये, इस मोह० ॥टेका। बसमें कुमत के अब तुम्हें होना न चाहिये। भोगों में निज आनन्द को खोना न चाहिये ॥ १ ॥ जाना है तुझे दूर बिकट पंथ अकेला। रस्ते में काटे शूलं को बोना न चाहिये ॥२॥ अपना स्वरूप देख पर परणति को छोड़दे । तू चेतन जड़ के संग में होना न चाहिये ।। ३ ।। तजराग देष न्यायमत संब पुदगलीक हैं। सुख में खुशी या रंज में रोना न चाहिये ।। ४ ॥
१९ चाल-अपनी हमें भक्ती का प्रभु दीजे दान ।
(अनायों की तरफ से अपील ।)
अपनी हमें सम्पति का कछु दीजो दान ।। टेक ॥ यह दीन अनाथ विचारे, फिरें घरघर मारे मारे । नहीं तुमको कछु ध्यान ।। अपनी० ॥१॥
Page #16
--------------------------------------------------------------------------
________________
-
-
--
-
न्यामत बिलास दुखियों की दशा निहारो, कछु दिलमें दया विचारो। तुम्हारा हो कल्याण ॥ अपनी० ॥ २॥ बिन मात पिता रहे बाले, जीने के पड़ गए लाले । सुनो तुम हो धनवान || अपनी०॥३॥ लाखों ने जान गवाई, नहीं कोई हुआ सहाई । बचालो हमरे प्राण ।। अपनी० ॥ ४ ॥ दयामय है धर्म तुम्हारा, यों कहता है जगसारा । तुम्हें भी है परमाण ॥ अपनी० ॥ ५॥ छपने ने वह दशा दिखाई, बने मुसलमान ईसाई । कहो करें क्या भगवान ।। अपनी० ॥६॥ नहीं चीर बदन पर म्हारे, फिरते हैं पाँव उघारे । बचेगी मुशकिल जान ।। अपनी० ॥७॥ है दान बड़ा सुखकारी, है सब संकट परिहारी । कहा ऐसा भगवान || अपनी०॥८॥ अन्न औषधि ज्ञान विचारो, और अभय दान चितधारो। करो चारों का दान ।। अपनी० ॥ ९॥ जिनमत करुणा चितधारी, खोला इक आश्रम भारी। हिसारं नगर अस्थान ॥ अपनी० ॥ १०॥ है बाल अवस्था ताकी, सब करो मदद मिल याकी । सभी का हो कल्याण ॥ अपनी० ॥ ११ ॥ नहीं लोगे खबर हमारी, घटजागी कान तुम्हारी। धरम की होगी हान ॥ अपनी० ॥ १२ ॥
-
-
-
Page #17
--------------------------------------------------------------------------
________________
-
-
-
-
न्यामत विलास दीनों की सुनो पुकांरी, कहें न्यामत बारम्बारी। धर्म का चमके भान । अपनी ।। १३ ।।
___ चाल--विन फन तन मन सब डस गई नागनि बनके बाँसुरी ॥ तन मन धन विन फनन्डस लेगी पर नारी नागनी ॥ टेक ॥ बच चलना चातुर चेतन यह नागन की नागनी ।। नैनों से वशकर-लेती छलबलकारी नागनी ॥ १ ॥ बिन क्रोध किये नहीं काटे तनको कारी नागनी । यह हँसकर वश मन करती जादूगारी नागनी ॥२॥ कछु देर लगे उसती दीखे वह कारी नागनी । चपला सी चंचल चोट करत चित हारी नागनी ॥३॥ इक भवमें प्राण हरे काटे जो कारी नागनी। . भव भव नहीं उतरे लहर डसे पर नारी नागनी ॥ ४॥ . यह सुख हारी दुखकारी भारी नारी नागनी। परम परकामन परकामन परहारी नागनी ॥ ५ ॥ हो लाख जतन जो काटे पखलकारी नागनी । न्यामत नहीं कोई उपाय उसे परनारी नागनी ॥ ६ ॥
-
-
-
-
चाल-तुम्हें दूंगा मैं वाको खबरिया जान ॥ मुझे देदो यह प्यारी सुंदरिया
जान ॥ नाटक ॥ तूतो करता है काहे पे इतना मान, तेरा जीना है जलका
बुलबुला जान ॥ टेक॥
Page #18
--------------------------------------------------------------------------
________________
-
-
--
-
-
'न्यामत बिलास प्यारे चंचल, अरे छोड़ो छोड़ो छलबल । मची हे सारे हलचल, यहाँ होरही है चलचल, न कयाम का नाम लो । तूतो करता० ॥ १॥ सारे काम रहेंगे ना कोई नाम रहेंगे। चलता नाहिं किसी का, दल बल जोर किसी का ॥ कर न दलील कहीं तूं, न्यामत ढील नहीं तू । | हैदर घर सब पर, तज कर जन जर ।। समकर दम कर, करफर मतकर, काहे पे इतना मान, तूतो करता है ॥ २॥
-
-
-
चाल--अफीम तेरे सट्टे ने पागल बना दिया.॥ (नई तरज) मदमोह की शराब ने आपा भुला दिया । आपा भुला दिया तुझे वेखुद बना दिया। टेक ॥ चेतन तेरा स्वरूप था जड़ सा बना दिया। जड़ कोंके फन्दे में है तुझको फँसा दिया॥१॥ . निश दिन कुमति को संगमें तेरे लगा दिया। दामन सुमता सी रानी का करसे छुड़ा दिया ॥२॥ उपयोग ज्ञान गुण तेरा ऐसे दबा दिया। आ. न्यामत जैसे बादल ने सूरज छिपा दिया ॥३॥
- (चाल-विन्दो लेदे लेदे लेदे मेरे माथे का सिंगार) मततारे तारे तारे मेरे शील का सिंगार।
-
-
Page #19
--------------------------------------------------------------------------
________________
MARomam
-
-
--
-
-
-
-
-
-
न्यामत विलास शील का सिंगार मेरा धरम सिंगार । टेक ।। गजा तेरे रानी कहिये आठ दश हजार। जिस पर तू परतिरया का लोभी जीवन धिक्कार ।। मत० ॥१॥ तू लाया क्यों नहीं जीत स्वयम्बर खुले दुखार । अकेली बनसे लाया मुझको करके मायाचार ।। मत० ॥२॥ मतना हाथ लगाइयो मेरे पापी दुराचार । मैं राखू शील शिरोमणि नातर मरूं इपवार ।। ३।। . न्यामत शील जगत में कहिये परम हितकार। अरे जो कोई याको त्यागे पड़े नरक मंझार ।। मत० ॥ ४॥
-
चाल-रिवाडी वाली की। कहाँ गया मिजाजन भर वाला कहाँ गए तेरे संगके साथी, संगके साथी जगके साथी ॥टेक॥ कहाँ गया तेरा कुटम्ब कबीला, कहाँ संगाती अरु नाती॥१॥ अब तू ऐसे देश चला है, पहुंच सकेगी नहीं पाती ॥२॥ छूट गया तेरामाल खजाना, छूट गये घोड़े हाथी ॥ ३ ॥ लाख उपाय करो चाहे बीरन, मौत लिए विन नहीं जाती॥४॥ चेतन छोड़ चला जड़ देही, जल गया तेल रही वाती ॥५॥ हाहाकार करें सुतनारी, मात पिता कूटै छाती ॥६॥ न्यामत शरणगहो जिनवानी, अन्त समय यही काम आती७
-
-
-
२५
-
चाल-मानतो जगाई घेरी नींद में | ढोला ॥ अरे चातुर चेतन काहे को पड़े हो जग कूप में।
-
-
--
pm
-
-
-
Page #20
--------------------------------------------------------------------------
________________
MAnima
.
d
an
-
-
-
१६
न्यामत विलास अरे हारे जग कूप में । ओ चातुर चेतन० ॥ टेक ।। तेरा रूप अरूप अरे चेतन चित्त क्यों लगाया रंग रूपमें ।
अ० ॥१॥ तृतो आनन्द सरूप अरे चेतन । किसने फँसाया
विषय कूप में ॥ अरे० ॥२॥ तज पर परणति अब न्यामत, ध्यान तो लगावो निज
रूप में ।। अरे० ॥ ३ ॥
चाल-नाटक ॥ है सनम तूचता कहाँ जाके छिया मुझे देतो पता नहीं आता नज़र ||
(काफ़ी रागजोग)
-
-
-
है सनम तो तेरा, तेरेदिलमें बसा, तू फिरेहै कहाँ नहीं .
. आता इधर। तू खुदीको हटा, अपने आपे में आ, जरा परदा हटा ।
. . . तुझे आवे नजर ।। टेक ॥ क्यों शिवाले गया, काहे गिरजा गया, काहे मसजिद में
. . जाके झुकाया है सर । तूने ढूंढ़ा नहीं, वरने था वो यहीं, तेरा माहेजवीं तेरे अन्दुसा॥ योही गंगा गया योंही जमुना गया, योही भटका फिरा ,
तू तो दर दर। अब तू आ अपने घर, प्यारे भटका न फिर,
लख करके नजर दिलमें दिलवर ॥ २॥
-
-
-
Page #21
--------------------------------------------------------------------------
________________
न्यामत विलास पढ़े वेदो पुरान, अंजीलो कुरान, हाय तूने पढ़ा नहीं
अपना जिकर ।
तू है निपट नादान, मेरे प्यारे अयान, लिया दुनिया को छान, नहीं देखा स्वघर ॥ ३ ॥
तुही आतम स्वरूप, परमातम स्वरूप, तुही भवशिव स्वरूप, नहीं तुझको खबर | न्यायमत दिल जमा, सारी व्याधी हटा, तु समाधी लगा, होवे माहिर ॥ ४ ॥
२७
चाल - कबसे तुममें यह शरारत आ गई || ग़ज़ल ||
कैसे तुमपर यह जहालत छागई । कैसे बदमस्ती शरारत आगई ॥ टेक ॥ तुमतो चेतन हो निराकार अय जिया । कैसे जड़ पुदगल की सोहबत भागई ॥ १ ॥
रूप अपना किस लिये देखा नहीं दूसरों पे क्यों मुहब्बत आगई ॥ २ ॥ सिर झुकाता क्यों नहीं जिनराज को । ऐसी क्या तुम में निज़ाकत आगई ॥ ३ ॥ किस तरह से तुझको समझाऊं दिला । न्यायमत आफत मुसीबत आगई || कैसे ० ||४||
3
१७
"
Page #22
--------------------------------------------------------------------------
________________
न्यामत विलास
२८
चाल --- रिवाड़ी वाले अतीव शकी || कहाँ गया मिजाजन घरवाला ||
१८
मत कर चेतन छल की बतियाँ, छल की बतियाँ बल की बतियाँ ॥ टेक ॥ झूठ कपट जग में दुखदाई, जासे नर्क मिले गतियाँ ॥ १ ॥ मन में हो सोई बात उचारो कर जो कहे मुखसों बतियाँ ॥ ॥ २ ॥ न्यामत सरल स्वभाव बनावो, सुखमें बीतें दिन रतियाँ ॥ ३ ॥
२९
चाल - महबूब यार जानो | पंजाबी ॥
सुनसुन प्राणी जिन बाणी, भवभव सुखदानी जी । मुक्ती की यही निशानी, क्यों मन नहीं आनी ॥ टेक ॥ जग का अंधेर मिटावें, मन भरम हटावे जी । कम्मों का फन्द कटावे, शिवनार मिलावे ॥ १ ॥ यह स्यादवाद सत भंगी, अनुयोग वारा अंगी । शिव मग दरसावन संगी, षट मत में चंगी ॥ २॥ सुज्ञान दीपमाला, कुज्ञान दैत काला । असि आऊसा मुखवाला, त्रिभुवन उजियाला ॥ ३ ॥ यह जग जननी जिनवाणी, परमारथ लाभ दानी | इम भाषी केवल ज्ञानी, न्यामत होना श्रद्धानी ॥ ४ ॥
Page #23
--------------------------------------------------------------------------
________________
न्यामत विलास
R ames
-
--
--
-
-
-
--
--
-
-
--
-
चाल-जै जगदीश हरे॥ (मानी ) जय अंतरयामी जय अंतरयामी। दुखहारी सुखकारी त्रिभुवन के स्वामी ॥ जय० ॥ टेक ।। नाथ निरंजन, सब दुख भंजन, संतन आधारा । पाप निकंजन, भवजन सम्पति दातारा ॥ जय० ॥१॥ करुणा सिंधु दयालु दया निधि, जयजय गुणधारी । बंछित पूरण श्री जिन सब जन सुखकारी ॥ जय० ॥२॥ ज्ञान प्रकाशी, शिवपुरबासी, अविनाशी अविकार । अलख अगोचर शिवमय, शिवस्मणी भरतार ॥ जय० ॥३|| बिमल कतारक, कलमल हारक, तुमहो दीन दयाल । जयजय.कारक, तारक पट जीवन रिछपाल ॥ जय० ॥ ४॥ न्यामत गुणगावे, पाप नशावे, चरणन सिरनावे । पुन पुन अर्ज सुनावे शिवकमला पावे ॥ जय० ॥५॥
-
-
-
-
-
-
-
-
-
चाल-भक्ती से मुफ्नी पायोग ।
-
समाकित विन फल नहीं पावोगे।
नहीं पावोगे पछतावोगे ।। टेक ॥ चाहे निर्जन बनतप करिये, विन समता दुख दाहोगे ॥१॥ मिथ्या मारग निश दिन सेवो, कैसे मुक्ती पावोगे ॥२॥
-
-
-
-
--
-
Page #24
--------------------------------------------------------------------------
________________
न्यामत बिलास | पत्थर नाव समन्दर गहरा- कैसे पार लंघावोगे ।। ३ ।। झूठे देव गुरू तजदीजे, नहीं आखिर पछतावोगे ॥ ४ ॥ न्यामत स्यादवाद मनलावो, यासे मुक्ती पावोगे ॥ ५॥
-
-
-
. चाल-चल चल गोरी योवना उभारे न चल ॥ ( नाटक) सुन २ प्यारे रस्ते में काँटेन बो, काटेनबो मतवारा न हो। टेक विषयों की यारी में होवेगी स्वारी । सातों में साथी न को,न को, न को प्यारे रस्ते में काँटे न वो? भववन में डेरा लुटेरों ने घेरा। उठा मोह निद्रा नसो, नसो, न सो प्यारे० ॥२॥ न्यामत विचारो जरा दिल मे धारो। धर्म रतन को न खो, न खो, प्यारे रस्ते में .. ३॥
-
-
-
--
चाल-नारस को-बूटी लाने का कैसा वहाना हुआ यूटी लाने का ॥
-
-
-
no
a
m
विषय सेनमें कोई भलाई नहीं । कोई सातों में है सुखदाई नहीं । विषय० ॥ टेक.॥ सुनो रावण का हाल, करके सीता से चाल । मरा होके वेहाल, पड़ा नकों के जाल,
· जहाँ कोई किसी का सहाई नहीं ॥ विषय० ॥१॥ .पाँचों पांडु कुमार, करके जुवा व्योहार ।
-
-
Page #25
--------------------------------------------------------------------------
________________
न्यामत विलास दिया द्रोपद को हार, दुःशासन बदकार ॥ हरा द्रोपद का चीर लाज आई नहीं || वि० || २ || वक राजा ने मांस, खाया करके हुलास । पड़ी बिपता की फाँस रोया लेले के स्वाँस | कोई आकर के धीर बँधाई नहीं || विपय० || ३ || देखो यादव सुजान, किया मदिरा का पान । हुए ऐसे अयान, खोई जलकर के जान || कोई तदबीर उनकी बन आई नहीं || विषय० ||४|| चारुदत्त प्रवीण, हुआ गणिका में लीन । ब्रह्मदत्त सुराय, मृग मारे वन जाय ॥ शिवदत्त अजब, किपा चोरी का दव | ऐसे सातों सुबीर, सही विषयों की पीर ॥ हुई न्यामत किसी की रिहाई नहीं || विपय० ॥ ५ ॥
३४
चाल चल चल गोरी योवना उभारे न चल ||
२१
चलचल प्यारे मुंह को उभारे न चल || टेक ||
ठोकर लगेगी ज़मी पै गिरोगे ।
Giant Does free, निकल, निकल प्यारे मुंह को उभारे
न वल ॥ १ ॥
फिरते हैं रस्ते में जीव अनन्ते ।
जागी कड़ी मकोड़ी कुचल, कुचल || कुचल० || ४ ||
Page #26
--------------------------------------------------------------------------
________________
a
m
-
न्यामत विलास ।। ईर्या सुमत यह जिनेन्द्र बखानी ॥ रखियो न्यामत कदम को सँभल, सँभल, सँभल प्यारे मुंह
को० ॥ चल चल ॥३॥
-
-
m
चाल-नाटक की-दही वाली का तौर दिखाना ॥
amian
-
-
.-
aan
a
-
atment
दया करने में दिलको लगाना । हाहा सता न कोई जिया
॥ दया०॥टेक॥ चोरी झूठ को मन से हटायो । होवे भला नगमें सदा, वरने नकों में होगा ठिकाना हाहा०१॥ तज परनारी, है दुःखकारी। सारी जिया मन में जचा,माता भगनीसुताके समाना हाहा॥२ मान लोभ मद माया चारों। चित न लगा, करले दया, न्यामत होवे मुक्ती में जाना ॥ .
-
-
-
-
-
-
-
-
चालानई-अमोलक है यह रतन प्यारे ॥ (पंजावी चाल)
अमोलक मनुष जनम प्यारे, भूल विषयों में मत हारे ।।टेका चौरासी लख जून में प्यारे, भ्रमत फिरा चहुं ओर । नरक स्वर्ग तिर्यंच में प्यारे, पाए दुख अति घोर ।। कहीं नहीं सुख पायो प्यारे ।। अमोलक० ॥१॥
-
-
Page #27
--------------------------------------------------------------------------
________________
न्यामत विलास
धन दे तन को राखिये प्यारे, तन दे रखेये लाज | धनदे तनंद लाज दे प्यारे, एक धरम के काज ॥ यही मुनिजन कह गए सारे || अमो० || २ || यही धर्म का सार है प्यारे, कर नित पर उपकार । तज स्वार्थ परमार्थ को प्यारे, भजले वारंवार ॥ न्यायमत हो भवदधि पारे || अमो० ॥ ३ ॥
३७
चाल नई तर्ज-मजा देते हैं क्या यार तेरे पाल घुंबर वाले ॥
जरा हो जावो हुशियार ओ. मुसाफिर जाने वाले । मुसाफिर जानेवाले ओ मुसाफिर जानेवाले ॥ टेक ॥ चोरों की फिरती है डार, क्रोध लोभ माया मदचार | लूटेंगे सुखसार, तेरे तोड़ ज्ञान के ताले || जरा० ॥ १ ॥ कर्मों का फैला है जाल, कुमता चपला चंचल चाल | करके हाल बेहाल तुझको घोर नरक में डाले || जरा ॥ २ ॥ वहाँ न्यामत कोई नहीं यार, मात पिता साजन परिवार । भाई और सुतनार, यारी का दम भरने वाले || जरा० ॥३॥
३८
चाल - हाय मुझे दरदे जिगर ने सताया ॥
२३
हाय मुझे छलके कुमति ने सताया । सुख सम्पति लेई, दुख दुरगत देई ||
fuen
Page #28
--------------------------------------------------------------------------
________________
has
-na
-
-MALLdaaduaadiancai-ARO
-
WADAMusal
-
-
-
-
-
-
-
न्यामत बिलास विषय भोगों में मुझको फँसाया ॥ हाय टेक॥ जमी में आग में पानी में वायु में दरख्तों में। कहूं क्या क्या नचाया नाच लेजा करके कुगतों में !! गया नकों में जब मरके पड़ा नीचे को सिर करके । मुसीबत वहाँ वह देखी थी कलेजा याद कर धड़के । । लाखों बदख्वार मिले, हा हा दुखकार मिले। सारे बदकार मिले पूरे मकार मिले। मुझको देखा जो जरा नर्क में आते आते ।। चीर डाला मेरा तन रस्ते में जाते जाते। हाय कुमता के धोके में आया ।। हाय मुझे ॥ :
-
-
-
-
-
-
--
... चाल-टूटे न दूध के दाँत उमर मेरी कैसे कटै बाली ॥
-
टूटी न मोह का जाल करम तेरे कैसे कटें भारी ॥ टेक ॥ एक तो की हिंसा दुखकारी, दूजे झूठ चोरी मनधारी। शील डिगाया लखपरनारी, लीप्रग्रहसारी ॥ ढूंटा०॥१॥ मद्रा और मांस नित खाया, गणिका संग रहा सुखपाया। दूत खेल आखेट रचा, भया जीवन पर हारी ॥ टूटा० ॥२॥ काम क्रोध माया में लागा लोभ मानकर सत को त्यागा। न्यामत नाम धर्म सुन भागा, करी कुमतयारी ॥ टूटा० ॥३॥
-
-
-
Page #29
--------------------------------------------------------------------------
________________
न्यामत विलास
चाल-अब हिज़म रहना हमें मंजूर नहीं है । (गजल).
--
-
मिथ्यात पै चलना हमें मंजूर नहीं है। . मंजूर नहीं है हमें मंजूर नहीं है । टेक ।। पुदगल अनादि जीव अनादी आकाशकाल । करता इन्होंका मानना जरूर नहीं है ।। मि० ॥ १॥ परमात्मा सर्वज्ञ बीतराग है सही। वह सत्यचिदानंद है मजदूर नहीं है । मि० ॥२॥ कर्मों को काट जब कि मुक्ति जीवकी होवे । फिर वहाँ से लौट आने का दस्तूर नहीं है ।। मि०॥ ३ ॥ आतम सरूप देख तु परमात्मा बने। घटमें तेरे दीदार वह कुछ दूर नहीं है । मि० ॥ ४॥ सुख दुक्ख तो कर्मोही से होता है जगतमें । फल देने में न्यामत कोई मकदूर नहीं है || मि० ॥ ५ ॥
चाल-पारसनाथ सुनो विनती मेरी यह वरदान दया करपाऊं।
परणति सब जीवन की प्राणी। तीन भाँति बरणी हम जानी ॥ टेक ।। एक पाप इक पुण्य निहारो दोनों ही जगबंध वखानी । रागद्धेप हरणी है तीजी, नाश जगत दुख मुक्ति दिखानी||१||
-
-
-
Page #30
--------------------------------------------------------------------------
________________
न्यामत विलास जवलग शुद्ध दशा नहिं होवे, तब लग पुण्य गहो सब प्राणी। पाप पुण्य फिर दोनों तनके, जाय लहो शिव नित सुखदानी। ! सारे मतका सार यही है, सुनलो सवजन सीख सयानी । न्यामत निश्चय कर मन अपने है भवदधि पार लंघानी ॥३॥
ima
...
n
.
-
..
mam
e mamompoundA
बाल-ताटक ॥ किसमत सब पर लानी माता
r
a-
...
maa.k-4.
e maraman-man-anaan
----
| क्यों करता है गर्व अनारी, झूठा है संसार असार । तनमन धन जोबन इक दिन सब, जाना है लख आँख पसार ।क्षत्री मारे परशुरामने ढूंढ ढूंढ के वारंवार । ताको मारा सुभूमचक्री, वह भी सदा रहा नहीं सार।।
रावण ने इन्द्र का छिनमें गरव हरा । ॥ लछमन ने वोह हता, सो वोह भी ना बचा ।।..
श्रीकृष्ण ने किया जरासिंधु सरजुदा। .. उसे जर्द ने हत्ता न्यामत हैं सार क्या ॥ १॥
-----
-m
.
-
--
.
-
-..
ARAMAT
--
घाल-नाटक ॥ दिले नादा को हम समझाय जाएंगे।
--
-
सदा चेतन तुम्हें समझाये जाएंगे। • . मानो ना मानो यह मन्शा तुम्हारी ।। न समझाने से हमतो बाज आएंगे ॥ टेक ।।
htareennar.
em--.
-
Page #31
--------------------------------------------------------------------------
________________
२७
-
-
-
-
-
-
mame
m
--a
-
-
न्यामत विलाम संग साथी न कोई तेरा जगत में प्यारे । तू अकेला है सदा सब है तेरे से न्यारे ।। तेरा कोई भी नहीं मात पिता परिवारे । तुझे अग्नी में धरके यह घरके जलाय आयेंगे।। सदा० ॥१॥ धन योवन तो रहा स्थिर न किसी का जगमें। एक दिन छोड़के जाना है तुझे सब जगमे ।। पाप बबूल क्यों बोता है तू न्यामत मगमें । यह न कर्मों के फंदे ओ अंधे हटाए जायेंगे ॥ सदा०॥२॥
-
--
-
--
-
-
--
-
-----
-
---
चाल-रिवाड़ी वाले प्रतीवर को, गावाज नेर में ना यो ।
-
-
-
मत मान करो मानो प्यारे। मानो प्यारे मानो प्यारे, मत मान करो मानो प्यारे । देक॥ मान किया राजा रावण ने । छिनके बीच गए मारे । मत० ॥१॥ इन्दर झूग इन्द्र कहायो। हार गया रण मझधारे । मत ॥ २ ॥ चक्री सुभूम सुमंत्र मिटायो । पड़ दधि नर्क गयो प्यारे । मत० ॥३॥ न्यामत मान महा दुःखदाई। याहि तने हाँ सुख सारे । मत०॥४॥
-
Page #32
--------------------------------------------------------------------------
________________
न्यामत विलास
चाल-अलीवख्श की मेरो प्यारारी जगैना जगा के हारी वादीला जगैना ॥
कोई प्यारो जी चलेना, कोई यारो जी चलेना। संगारे नारी बाँदी तो चलेना, कोई प्यारो जी चलेना ॥ टेका ऊँची अटरिया कोट-कुरिया जामें प्राण बना। चारों गती में तू फिर आया, कर्मों की जंजीर कटेना कोई०१॥ भाई भेनरया, मात पितरया, कोई बीच पड़ेना। न्यामत सब स्वास्थ के साथी, डावर सूकी कोई पैर धरेना
॥ कोई० ॥ २॥
-
-
-
चाल--गज़ल होलो ॥ ज़माना तेरा मुन्तला हो रहा है ।
-
-
| तू क्या उम्र की शाखौ सो रहा है।
खबर भी है तुझको कि क्या होरहा है । टेक॥ कतरते हैं चूहे इसे रात दिन दो।
और इसपै तू यों बेखवर सो रहा है ।। तू०॥ १॥ है नीचे खड़ा मौत का मस्त हाथी । तेरे गिरने का मुंतज़िर हो रहा है ।। तू० ॥३॥ | अय न्यामत यह टहनी गिरी चाहती है। | विषय बूंद पै अपनी जांखो रहा है।॥३॥
-
-
-
Page #33
--------------------------------------------------------------------------
________________
न्यामत विलास
चाल-चले हे कार के हिलाने को ।।
पढ़ो विद्या अविद्या हटाने को। हटाने को भय मिटाने को ।। टेक ॥ . . खोया जहालत ने भारत को प्यारे । पढ़ो विद्या जहालत मिटाने को ॥ पढ़ो० ॥ १ ॥ फूट अविद्या ने घरघर में डाली। सारी भारत की संपत लुटाने को। पढ़ो॥२॥ भारत में व्यभिचार इसने चलाया। बल बीरज सभोंके घटाने को ।। पढ़ो० ॥३॥ न्यामत अविद्या ने भारत उजाड़ा। . लड़े आपस में सरके कटाने का ॥ ४॥
चाल-पहलू में यार है मुझे उसकी खबर नहीं ॥ (गजल)
परदा पड़ा है मोह का आता नजर नहीं। चेतन तेरा स्वरूप है तुझको खबर नहीं ।। टेक ।। चारों गती में मारा फिरा ख्वार रात दिन । आपे में अपने आपको लखता मगर नहीं ॥१॥ तज मन विकार धारले अनुभव सुचेत हो। निजपर विचार देख जगत तेरा घर नहीं ॥ २॥
Page #34
--------------------------------------------------------------------------
________________
-
-
-
-
-
-
न्यामत विलास तू भवस्वरूा शिवस्वरूप ब्रह्म रूप है। विषयों के संग से तेरी होती कदर नहीं ॥३॥ चाहे तो कर्म काट तू परमात्मा बने । अफसोस कभी इसपै तू करता नजर नहीं ॥ ४ ॥ निज शक्ति को पहिचान समझ अब तो न्यामत । | आलस में पड़े रहने से होता गुजर नहीं ॥५॥
-
-
-
चाल-सारठ अधिक सरूप रूप का दिया न जागा मान ॥
-
-
जिया रागभाव दुखदाई राग को मन से हटाओ जी। मन से हटाओ जी, राग को मन से हटाओजी ॥ टेक ॥ है राग निमत संसार करम का मूल बतायोजी । जो चाहो हो परमानन्द भाव बैराग बनावोजी ॥१॥ यह राग चिकट समजान भूल इस रस्ते न जावोजी। लगजावेगी कर्मों की धूल ज्ञानदामन को बचावोजी ।।२।। अब पर परणति को छोड़ ध्यान आपे में जमावोजी। . न्यामत तजराग अरु देष सदा आतम गुणगावोजी ।।३।।
-
-
-
-
-
चालनाटक को ॥ मुस्लमाँ होने को अय काया में तय्यार नहीं। . धर्म के बदले में जां देने में कुछ मार नहीं (गजल )
-
--
कर्म फलदाता कोई और तो बनता है नहीं। आप फल देता है यले सो वह टलता है नहीं । टेक॥
-
--
-
-
Page #35
--------------------------------------------------------------------------
________________
--
-
-
--
---
-
-
-
-
-
-
-
-
--
--
न्यामत विलास सुख व दुख जीवको होता है कम से अपने । कर्म का वंध समझ लो कि बदलता है नहीं ॥ १ ॥ करता हरता है यही जीव करम का अपने । यह वह मसला है किसी न्याय से कटता है नहीं ॥ २ ॥ है वह ईश्वर तो सकल विश्व का द्रष्टज्ञाता । उसपै इल्जाम सजादेने का लगता है नहीं ॥ ३ ॥ पेड़ वंचूल जो बोवोगे तो काँटे लोगे। अम्बफल कैसे लगेगा जो तू बोता है नहीं ॥ ४॥ है स्वयम् सिद्ध यह संसार रहेगा योंहीं। दिन कयामत के कभी नांश यह होता है नहीं ॥५॥ इसको ईश्वर जो रचे फेर करे नाश इसका। खेल बच्चों का है सो पेसा वह करता है नहीं ।।। इसपै ईमान करो झूठे खयालात तजो।। न्यायमत वस्तु का निजगुण तो बदलता है नहीं ॥७॥
-
-
--
-
-
-
चाल-पहलू में यार है मुझे उसकी खबर नहीं । (गज़ल)
--
-
-
-
-
-
दुनिया में देखो सैकड़ों आए चले गये। सब अपनी करामात दिखाये चले गये ।। टेक ।। अर्जुन रहा न भीम न रावण महावली। इस काल वली से सभी हारे चले गये ॥१॥ |क्या निधनो धनवंत और मुखों गुणवंत ।
-
-
-
Hamabran
-
.
-
-
-
-
-
-
-
Page #36
--------------------------------------------------------------------------
________________
-
-
३२
न्यामत बिलास सब अंत समय हाथ पसारे चले गये ॥ २॥ सब जंत्र मंत्र रह गए कोई बचा नहीं। . इक वह बचे जो कर्मों को मारे चले गये ॥ ३ ॥ सम्यक्त धार न्यायमत नहीं दिल में समझले। . पछतायगा जो प्राण तुम्हारे चले गये ॥ ४ ॥
-
चाल-होरोरुत्रा सितमगरा सच तो बता तु कौन है। . . अय दिल जरा तु कर निगाह इस जगमें तेरा कौन है। सुख दुखमें साथ दें तेरा सच तो बता वह कौन है । टेक ।। || माता पिता या सुत सुता, इनमें नहीं कोई सगा।.. ॥ भाई बहन या बंधुजन, साजन सजन में कौन हैं ॥१॥ नारी को प्यारी जानता. यारों की यारी मानता । । अन्त समय में दें दगा, फिर तेरा यार कौन है ॥२॥ तनं मन बचन कन धन बसन, हैं सर्व अन्य करले मनन । न्यामत धरम कर शुभ यतन, इन बिन हितैषी कौन है ॥३॥
m
चाल-पहलू में यार है मुझे उसको ख़वा. नहीं ।
यह कैसी मुक्ती आपने मानी बताइये । मुक्ती से लौटना बने, क्योंकर सुनाइये ।। टेक ॥ जो जीवके मुक्ती में लगे कर्म कहोगे। तो भेद जगत मुक्ति में क्या है दिखाइये ॥१॥
Page #37
--------------------------------------------------------------------------
________________
-
-
-
-
am-samara
-
-
-
-
-
-
-
न्यामत विलास गर कर्म कोई मोक्ष में वाक़ी नहीं रहता। तौ लौटने का जर्या भी हमको वताइये ॥ २ ॥ फिर कुछ हजार वर्ष की क्यों कैद लगाई। इसमें प्रमाण क्या है हमें भी जिताइये ॥३॥ कहते हो लौटने पै रहे ज्ञान मुक्ति का। . दुनिया में कोई एक तो हमको दिखाइये ॥ ४ ॥ जब कमे काट आत्मा परमात्मा बने। करमों में फंसे फिर न यकीं इस पै लाइये ।। ५॥ परमाण नयमे सिद्ध फिर आना नहीं होता। न्यामत जरा अज्ञान का परदा हटाइये ॥६॥
-
..
--
-
-
-
-
. "चाल-चर्खा लेदे कार के हिलाने को ॥ .. शरणा लेले करम के जलाने को, जलानेको शिवजानेको ! टेक चारोंही मंगल चारों ही उत्तम,चारों का शरणा सुख पानेको १ अरहंत सिद्ध और मुनी जैनवाणी, कारणहै शिवपद दिलानेकोर सम्यक्त नय्यामें चलबैठ न्यामत,मोह सांगरसे पारहो जानेको ३
-
-
-
-
-
-
३
main
-
-
-
-
-
-
-
---
--
-
-
-
-
-
-
चाल---नई ॥ अमोलक है यह रतन प्यारे ॥ (पंजावी) अमोलक जैन धरम प्यारे, भूल विषयों में मतहारे ॥ टेक ।। धर्म पिता. माता धर्म प्यारे, धर्म सँगाती जान। धर्म देत संसार सुख प्यारे, देत स्वर्ग निर्वाण ॥ धर्म विन कोई नहीं प्यारे ।। अमोलक० ॥१॥ तनजाते धन दीजिए प्यारे, तनदे लाज सँवार । काम पड़े. जव धर्म का प्यारे, तीनों दीजो वार। धाम से विघ्न र सारे || अमोलक० ॥२॥
-
-
-
-
-
-
- - la
Page #38
--------------------------------------------------------------------------
________________
न्यामत बिलास अग्नि शैल रणसिंधु में प्यारे, पहुंच सके नहिं कोय । न्यामत निश्चय जानियो प्यारे, धर्म सहाई होय ॥ धरम भवसागर से तारे ।। अमोलक० ॥ ३ ॥
चाल-चलती चपला चंचल चाल सुन्दरनार अलवेली ॥ (नाटक). चल चल अब चल आतम बाग छलबलिया मनवेली ॥ जोबन मदमाता डोले, आनंद अमृत विष घोले । करता कुमतासंग अठखेली ॥ चल चल० ॥ टेक ॥ ज्ञान गुलाब अनुभव भँवर, संयम सोसनजान । सहस अठाराशील के सर्व लखो कर ध्यान ।। आतमगुण फूल चितारो, चर्चा चम्पा चित धारो। चहुंदिश खिलरही चरित चमेली ॥ चल चल० ॥ १॥ न्यामत बाग निहारिये, दर्शन आँख पसार । मरखा मोह निवारदो, आन मिले शिवनार । आहा शिवसुन्दर प्यारी, हाँ हाँ आतम सुखकारी । सखी सुमतासी लार सुहेली ॥ चल चल० ॥२॥
-
चाल-टूटे न दूधके दाँत उमर मेरी कैसे कटे वाली । सुन स्यादाद सतभंग अरे मत करे जनम स्वारी । टेक ॥ मतना रागी देव मनावे मत लोभी गुरु शीस नवावे । मतना सुन मिथ्या मतबाणी भवभव दुखकारी ॥१॥ कर मिथ्या सेवन नर्के गया तहाँ दुःख सहे भारी॥ तेरा नेम धर्म और निज सुधबुध सब दलमल करडारी ॥२॥ तैआठ आठ तेरा को छोड़ पौपच्चीस चितधारी। .. सुमतासी सुन्दर साग दई कुमता से करी यारी॥३॥
-
Page #39
--------------------------------------------------------------------------
________________
न्यामत विलास
कहीं पूजे भूत अरु ऊत शीतला अरु देवी सारी । कहीं पूजे पीर फ़क़ीर कोधी अरु ममताधारी || ४ || कहीं पूजी सेढ मसानी, काली नागभवनवारी । कहीं पित्रश्राद्ध कराए जिमाए बहु नर अरु नारी ॥ ५ ॥ कहीं भैरव दानाशेर मनाए क्षेत्रपाल भारी । कहीं जा पूजागूगा ख्वाजा अरु कुतव गोसभारी ॥ कहीं गंगा जमुना फिरा डोलता ज्वाला जटधारी । कहीं बड़ पीपल पशुचाक मनाए मिल सब नरनारी ॥ ७ ॥ कहीं भैंसे बकरे मार चढ़ादिए करी दुराचारी | कहीं बैल बुटेर कलीक वेद में लिखकर दिए जारी ॥ ८ ॥ कहीं पूजे बंदर मस्तकलंदर धूर्त जटाधारी । तज न्यामत यह पाखंड गई क्यों अक्ल तेरी मारी ॥ ९ ॥
६ ॥
५८
चाल ---इन्दर सभा | अरे लालदेव इस तरफ़ जल्द भा
अरे सुन तो चेतन जरा देके ध्यान । कि होता है कुछ तुझको अपना भी ज्ञान ।। १ ।। अविनाशी है चेतन है ज्ञाता है तू । बिनाशी पै नाहक लुभाता है तू ॥ २ ॥ है अफसोस चेतन तेरी सीख पर । कि आशिक हुआ तू बिनाशीक पर ॥ ३ ॥ बनाया अरे तूने बिपयों को यार । लिए फिरता है दुष्ट कर्मों को लार ॥ ४ ॥ उड़ाता है क्यों खाक नरभव की तू । -करे है तलाश और किस भवकी तू ॥ ५ ॥ मनुप देह फिर तू नहीं पाएगा ।
३५
Page #40
--------------------------------------------------------------------------
________________
-
३६
न्यामत बिलास समझ नहीं फिर तू पछताएगा ॥ ६॥ . यह अच्छी नहीं भूल तू छोड़ दे। श्री गुरु पैजा, न्यायमत सीखले ॥ ७॥
-
-
mann
a
madan
a
R
चाल-सारठ अधिक स्वरूप रूप का दिया न जागा मोल । . कर सकल विभाव अमाव भावसे करले पर उपकार ।। टेक ॥ पाप पुन्य से दुख सुख होवें सो सब जग व्योहार। त तिहुं जगतिहुं काल अकेला, देखन जानन हार ॥१॥ देह संयोग कुटुम्ब कहायो, सोतन अलग निहार । हम न किसी के कोई न हमारा, झूठा है संसार ॥२॥ राग भावसे सज्जन माने, दुर्जन द्वेष विचार । यह दोनों तेरे नहिं न्यामत, तू चेतन पदधार ॥ ३ ॥
-
-
-
-
-
-
-
-
चाल-नाटकं ॥ दहीवाली का तौर दिखाना ॥ सबको जय जय जिनेन्द्र सुनाना। आहा समा है कैसा बना ।। सब० ॥ टेक || श्री जिनवर का ध्यान लगायो । जिसने दिया, हमको जगा, मोह निद्रा में था सबजमानाः १॥ सम्यक दरशन दिलमें धारो। जिससे जिया, होगा तेरा. सीधा मुक्ती के रस्ते.को जाना॥२॥ स्याहाद पर ईमान लावी। जिससे करे, इक दम मिटे, झूठी युक्ती का कल्पित बहाना ॥३॥ नय परमाण से तहकीक करलो। परदा हटा, पक्ष मिटा, यही न्यामत्त जिनेन्द्र बखाना ॥ ४ ॥
॥ इति श्री जैन भजन मुक्तावली समाप्तम् ॥
-
-
-
--
--
Page #41
--------------------------------------------------------------------------
_