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न्यामत विलास अरे हारे जग कूप में । ओ चातुर चेतन० ॥ टेक ।। तेरा रूप अरूप अरे चेतन चित्त क्यों लगाया रंग रूपमें ।
अ० ॥१॥ तृतो आनन्द सरूप अरे चेतन । किसने फँसाया
विषय कूप में ॥ अरे० ॥२॥ तज पर परणति अब न्यामत, ध्यान तो लगावो निज
रूप में ।। अरे० ॥ ३ ॥
चाल-नाटक ॥ है सनम तूचता कहाँ जाके छिया मुझे देतो पता नहीं आता नज़र ||
(काफ़ी रागजोग)
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है सनम तो तेरा, तेरेदिलमें बसा, तू फिरेहै कहाँ नहीं .
. आता इधर। तू खुदीको हटा, अपने आपे में आ, जरा परदा हटा ।
. . . तुझे आवे नजर ।। टेक ॥ क्यों शिवाले गया, काहे गिरजा गया, काहे मसजिद में
. . जाके झुकाया है सर । तूने ढूंढ़ा नहीं, वरने था वो यहीं, तेरा माहेजवीं तेरे अन्दुसा॥ योही गंगा गया योंही जमुना गया, योही भटका फिरा ,
तू तो दर दर। अब तू आ अपने घर, प्यारे भटका न फिर,
लख करके नजर दिलमें दिलवर ॥ २॥
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