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न्यामत विलास शील का सिंगार मेरा धरम सिंगार । टेक ।। गजा तेरे रानी कहिये आठ दश हजार। जिस पर तू परतिरया का लोभी जीवन धिक्कार ।। मत० ॥१॥ तू लाया क्यों नहीं जीत स्वयम्बर खुले दुखार । अकेली बनसे लाया मुझको करके मायाचार ।। मत० ॥२॥ मतना हाथ लगाइयो मेरे पापी दुराचार । मैं राखू शील शिरोमणि नातर मरूं इपवार ।। ३।। . न्यामत शील जगत में कहिये परम हितकार। अरे जो कोई याको त्यागे पड़े नरक मंझार ।। मत० ॥ ४॥
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चाल-रिवाडी वाली की। कहाँ गया मिजाजन भर वाला कहाँ गए तेरे संगके साथी, संगके साथी जगके साथी ॥टेक॥ कहाँ गया तेरा कुटम्ब कबीला, कहाँ संगाती अरु नाती॥१॥ अब तू ऐसे देश चला है, पहुंच सकेगी नहीं पाती ॥२॥ छूट गया तेरामाल खजाना, छूट गये घोड़े हाथी ॥ ३ ॥ लाख उपाय करो चाहे बीरन, मौत लिए विन नहीं जाती॥४॥ चेतन छोड़ चला जड़ देही, जल गया तेल रही वाती ॥५॥ हाहाकार करें सुतनारी, मात पिता कूटै छाती ॥६॥ न्यामत शरणगहो जिनवानी, अन्त समय यही काम आती७
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चाल-मानतो जगाई घेरी नींद में | ढोला ॥ अरे चातुर चेतन काहे को पड़े हो जग कूप में।
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