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॥ श्री बीनगगायनमः॥
न्यामतमिह रचित जैन ग्रंथमाला।
(अंक ५)
जैन भजन मुक्तावली
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प्रभू तुमहो तारनतरन हमें भी पार पाओ जी देश भवसिन्ध्र अगम अपार पार इसको नहीं आया जी। मेरी नव्या वीच मंझधार डूबती है लो बचावो जी ॥१॥ रागादि घटा चहुंओर तिमिर आखों में छायो जी। निजपर नहीं सूझे नाथ मुझे रस्ते तो लगाओ जी ॥२॥ : आगयो तसकर परमाद ज्ञान विज्ञान भुलाओ जी! है निराधार न्यामन अव आयो मतदर लगाओ जी ॥३॥
घान-दयू में पार है. मु. Ti Ter Art : TARA
जिनराज हमम यश तेग गाया नहीं जाना। यहाँ ऐ तो जरा भी दिलाया नहीं जाना ||१||
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