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________________ न्यामत बिलास अग्नि शैल रणसिंधु में प्यारे, पहुंच सके नहिं कोय । न्यामत निश्चय जानियो प्यारे, धर्म सहाई होय ॥ धरम भवसागर से तारे ।। अमोलक० ॥ ३ ॥ चाल-चलती चपला चंचल चाल सुन्दरनार अलवेली ॥ (नाटक). चल चल अब चल आतम बाग छलबलिया मनवेली ॥ जोबन मदमाता डोले, आनंद अमृत विष घोले । करता कुमतासंग अठखेली ॥ चल चल० ॥ टेक ॥ ज्ञान गुलाब अनुभव भँवर, संयम सोसनजान । सहस अठाराशील के सर्व लखो कर ध्यान ।। आतमगुण फूल चितारो, चर्चा चम्पा चित धारो। चहुंदिश खिलरही चरित चमेली ॥ चल चल० ॥ १॥ न्यामत बाग निहारिये, दर्शन आँख पसार । मरखा मोह निवारदो, आन मिले शिवनार । आहा शिवसुन्दर प्यारी, हाँ हाँ आतम सुखकारी । सखी सुमतासी लार सुहेली ॥ चल चल० ॥२॥ - चाल-टूटे न दूधके दाँत उमर मेरी कैसे कटे वाली । सुन स्यादाद सतभंग अरे मत करे जनम स्वारी । टेक ॥ मतना रागी देव मनावे मत लोभी गुरु शीस नवावे । मतना सुन मिथ्या मतबाणी भवभव दुखकारी ॥१॥ कर मिथ्या सेवन नर्के गया तहाँ दुःख सहे भारी॥ तेरा नेम धर्म और निज सुधबुध सब दलमल करडारी ॥२॥ तैआठ आठ तेरा को छोड़ पौपच्चीस चितधारी। .. सुमतासी सुन्दर साग दई कुमता से करी यारी॥३॥ -
SR No.010205
Book TitleJain Bhajan Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyamatsinh Jaini
PublisherNyamatsinh Jaini
Publication Year
Total Pages41
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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