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________________ न्यामत विलास जवलग शुद्ध दशा नहिं होवे, तब लग पुण्य गहो सब प्राणी। पाप पुण्य फिर दोनों तनके, जाय लहो शिव नित सुखदानी। ! सारे मतका सार यही है, सुनलो सवजन सीख सयानी । न्यामत निश्चय कर मन अपने है भवदधि पार लंघानी ॥३॥ ima ... n . - .. mam e mamompoundA बाल-ताटक ॥ किसमत सब पर लानी माता r a- ... maa.k-4. e maraman-man-anaan ---- | क्यों करता है गर्व अनारी, झूठा है संसार असार । तनमन धन जोबन इक दिन सब, जाना है लख आँख पसार ।क्षत्री मारे परशुरामने ढूंढ ढूंढ के वारंवार । ताको मारा सुभूमचक्री, वह भी सदा रहा नहीं सार।। रावण ने इन्द्र का छिनमें गरव हरा । ॥ लछमन ने वोह हता, सो वोह भी ना बचा ।।.. श्रीकृष्ण ने किया जरासिंधु सरजुदा। .. उसे जर्द ने हत्ता न्यामत हैं सार क्या ॥ १॥ ----- -m . - -- . - -.. ARAMAT -- घाल-नाटक ॥ दिले नादा को हम समझाय जाएंगे। -- - सदा चेतन तुम्हें समझाये जाएंगे। • . मानो ना मानो यह मन्शा तुम्हारी ।। न समझाने से हमतो बाज आएंगे ॥ टेक ।। htareennar. em--. -
SR No.010205
Book TitleJain Bhajan Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyamatsinh Jaini
PublisherNyamatsinh Jaini
Publication Year
Total Pages41
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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