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________________ - - -- - न्यामत बिलास दुखियों की दशा निहारो, कछु दिलमें दया विचारो। तुम्हारा हो कल्याण ॥ अपनी० ॥ २॥ बिन मात पिता रहे बाले, जीने के पड़ गए लाले । सुनो तुम हो धनवान || अपनी०॥३॥ लाखों ने जान गवाई, नहीं कोई हुआ सहाई । बचालो हमरे प्राण ।। अपनी० ॥ ४ ॥ दयामय है धर्म तुम्हारा, यों कहता है जगसारा । तुम्हें भी है परमाण ॥ अपनी० ॥ ५॥ छपने ने वह दशा दिखाई, बने मुसलमान ईसाई । कहो करें क्या भगवान ।। अपनी० ॥६॥ नहीं चीर बदन पर म्हारे, फिरते हैं पाँव उघारे । बचेगी मुशकिल जान ।। अपनी० ॥७॥ है दान बड़ा सुखकारी, है सब संकट परिहारी । कहा ऐसा भगवान || अपनी०॥८॥ अन्न औषधि ज्ञान विचारो, और अभय दान चितधारो। करो चारों का दान ।। अपनी० ॥ ९॥ जिनमत करुणा चितधारी, खोला इक आश्रम भारी। हिसारं नगर अस्थान ॥ अपनी० ॥ १०॥ है बाल अवस्था ताकी, सब करो मदद मिल याकी । सभी का हो कल्याण ॥ अपनी० ॥ ११ ॥ नहीं लोगे खबर हमारी, घटजागी कान तुम्हारी। धरम की होगी हान ॥ अपनी० ॥ १२ ॥ - - -
SR No.010205
Book TitleJain Bhajan Muktavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNyamatsinh Jaini
PublisherNyamatsinh Jaini
Publication Year
Total Pages41
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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