Book Title: Jain Bhajan Muktavali
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 35
________________ -- - - -- --- - - - - - - - - -- -- न्यामत विलास सुख व दुख जीवको होता है कम से अपने । कर्म का वंध समझ लो कि बदलता है नहीं ॥ १ ॥ करता हरता है यही जीव करम का अपने । यह वह मसला है किसी न्याय से कटता है नहीं ॥ २ ॥ है वह ईश्वर तो सकल विश्व का द्रष्टज्ञाता । उसपै इल्जाम सजादेने का लगता है नहीं ॥ ३ ॥ पेड़ वंचूल जो बोवोगे तो काँटे लोगे। अम्बफल कैसे लगेगा जो तू बोता है नहीं ॥ ४॥ है स्वयम् सिद्ध यह संसार रहेगा योंहीं। दिन कयामत के कभी नांश यह होता है नहीं ॥५॥ इसको ईश्वर जो रचे फेर करे नाश इसका। खेल बच्चों का है सो पेसा वह करता है नहीं ।।। इसपै ईमान करो झूठे खयालात तजो।। न्यायमत वस्तु का निजगुण तो बदलता है नहीं ॥७॥ - - -- - - - चाल-पहलू में यार है मुझे उसकी खबर नहीं । (गज़ल) -- - - - - - दुनिया में देखो सैकड़ों आए चले गये। सब अपनी करामात दिखाये चले गये ।। टेक ।। अर्जुन रहा न भीम न रावण महावली। इस काल वली से सभी हारे चले गये ॥१॥ |क्या निधनो धनवंत और मुखों गुणवंत । - - - Hamabran - . - - - - - - -

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