Book Title: Jain Bhajan Muktavali
Author(s): Nyamatsinh Jaini
Publisher: Nyamatsinh Jaini

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Page 36
________________ - - ३२ न्यामत बिलास सब अंत समय हाथ पसारे चले गये ॥ २॥ सब जंत्र मंत्र रह गए कोई बचा नहीं। . इक वह बचे जो कर्मों को मारे चले गये ॥ ३ ॥ सम्यक्त धार न्यायमत नहीं दिल में समझले। . पछतायगा जो प्राण तुम्हारे चले गये ॥ ४ ॥ - चाल-होरोरुत्रा सितमगरा सच तो बता तु कौन है। . . अय दिल जरा तु कर निगाह इस जगमें तेरा कौन है। सुख दुखमें साथ दें तेरा सच तो बता वह कौन है । टेक ।। || माता पिता या सुत सुता, इनमें नहीं कोई सगा।.. ॥ भाई बहन या बंधुजन, साजन सजन में कौन हैं ॥१॥ नारी को प्यारी जानता. यारों की यारी मानता । । अन्त समय में दें दगा, फिर तेरा यार कौन है ॥२॥ तनं मन बचन कन धन बसन, हैं सर्व अन्य करले मनन । न्यामत धरम कर शुभ यतन, इन बिन हितैषी कौन है ॥३॥ m चाल-पहलू में यार है मुझे उसको ख़वा. नहीं । यह कैसी मुक्ती आपने मानी बताइये । मुक्ती से लौटना बने, क्योंकर सुनाइये ।। टेक ॥ जो जीवके मुक्ती में लगे कर्म कहोगे। तो भेद जगत मुक्ति में क्या है दिखाइये ॥१॥

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